पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७५० कधजाति शुभाशुभ फल बताते हैं। उड़िया दैवन कोष्ठो बना, अच्छा उनको खिलाते थे। वह स्वच्छन्द सर्वत्र घूमते रहे। किन्तु अल्पवयस्क घरसे बाहर निकलने पावे पूर्वकाल पृथौदेवता पौर युद्धदेवता पर नरवंलि न थे। कभी कभी पान वलिके निमित्त प्रानौत चढ़ता था । बेरापेनके उपासक बैरापनको और तारा- युवक-युवतीको एकत्र रख सहवास करने देते। उस देवीके उपासक तारादेवीको हो पृथी देवता बताते | गर्भसे जो सन्तान निकलते, वह भविष्यत् पलिके हैं। फलतः पृथौके उद्देश्यसे उभय दल एकत्र होते | लिये रक्षित रहते थे। भी बेरा-पेनके उपासक मन ही मन नरवलि चढ़ानेको वलिसे १०।१२ दिन पूर्व कन्ध निर्वाचित पात्रका प्रथाकी बहुत बुरा समझते थे। ताराके उपासक | मस्तक मुंडा डालते। फिर समस्त ग्रामवासी एकत्र कहते हैं,-'पहले पृथिवी अत्यन्त कठिन और वषिके। | हो और नहा-धो उसको पुरोहितके पवित्र आश्रम- लिये अनुपयुक्त थी, कहीं भी उर्वरता न रही। ताराने | पर ले जाते थे। पुरोहित उसी समय देवताको भक्तों की दुर्दशा देख एक क्षेत्रपर अपना र टपका सूचना देते-वलि प्रस्तुत होता है। पुरोहितके दिया। उसीसे पृथिवीमें उर्वरता पायो। फिर उस साथममें ३ दिन उत्सव मनाया जाता था। प्रवाध दिनसे उनके उद्देश्यपर खेत बोते और काटते समय नृत्य, गीत, मद्यपान और आहारादि चलते रहा। नरवलि देना चल पड़ा। कोई कोई कहता-पृथि पूस उत्सवके पीछे बलि चढ़नेसे पूर्व दिन पात्रको वीको कठिनता और अनुर्वरता देख सब लोग पृथी- रात्रिमें उपवासी बना और प्रातःकाल भली देवताके निकट जा रोने लगे थे। उन्होंने लोगोंके | भांति स्नान करा नव वस्त्र पहनाते, फिर सब मिल- दुःखसे घबरा कह दिया-प्रत्येक क्षेत्रमें मनुष्यका जुल नाचते नाचते पुरोहितके साथ पलिस्थान रक्त छिड़को। सबने तौटकर एक बालकको वलि | पर ले जाते थे। किसी पुरातन वनका कियदंश चढ़ाया और रक्तसे क्षेत्र छिड़काया था। देवताने | उक्त उद्देश्यसे सुरक्षित रखते और वृक्षादि काट फिर पादेश लगाया-इस प्रथाको तुम चिरदिन अव- | कुठाराघातसे कलवित न करते। लोगोंको विश्वास लम्बन करोगे। उसी समयसे नरवलि चला है। रहा-यहां उपदेवता वास करते हैं। वलिस्थानके , नरवखिका नाम भेरिया उत्सव है। भेरिया बिलकुल मध्यस्थलमें एक खटा गाड़ते थे। v टेको उडिया भाषाका शब्द है। उसका अर्थ वलिपात्र दोनों ओर अपने देशका पांकीशार नामक कंटोला लगता है।' कन्ध-भाषामें वलिके पात्रको ढोको वा पेड़ लगाते। पोछे पुरोहित खं टेके पास बालकको केदी कहते हैं। पान या पनवोया जातिके लोग ही बैठा भली भांति बांधते थे। फिर उसके हलदी इस वलिका पात्र संग्रह करते थे। अर्थ दे क्रय | और तेल लगाया जाता। कन्ध उक्त तेल-हरिद्रा करनेका नियम रहते भी अधिक स्थलों में वह चोरोसे वा उस दिनके वलिका अङ्गस्पृष्ट कोई ट्रव्य अति वलिका पात्र ले आये, किन्तु न मिलनेसे लोभ पवित्र मानते। सुतरां प्रत्येक उपस्थित व्यक्ति उससे : वशतः अपना सन्तान पर्यन्त साप जाते थे। कुछ न कुछ लेनेके लिये पाग्रह देखा बड़ा कोलाहल . वलिके लिये कन्ध किसी जातीय स्त्री वा पुरुषको मचाता। उस दिन वलिको समग्र रात बंधा हो निर्वाचित कर सकते रहे। किन्तु अल्पवयस्क रखते थे। फिर अन्यान्य उपस्थित व्यक्ति खाने- बालकबालिका हो जुटाते थे। पान माना स्थानोंसे पौने पोर नाचने-गाने में लग जाते । परदिन दो- वलिके पात्र लाते रहे। समय पाकर एकबारगी ही पहर तक पामोद चलता था। पीछे सब लोग बहतसे पकड़ रखते थे। वलिके पात्र जितने दिन ग्राममें ठहरते, उतने दिन सब लोग उनसे सादर प्रस्तुत होते। वलिको बांधकर मारना मना है। व्यवहार करते रहे। लोग स्वयं जो द्रव्य खाते, उससे । इसीसे हाथ-पैर कटा या अफीम खिला उसे