पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७५४

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७५४ कन्यना-कन्याकाल अन्तर्गत एक तीर्थ। प्रभासखण्ड के किसी-किसी कहते-कन्यामें मयरके पक्षको भांति बारह मनोज्ञ पुस्तकमें यह कर्ण कुन नामसे उक्त है। कर्णकुन देखो। ! पत्र लगते हैं। क्षीर स्वर्णवर्ण निकलता है। कन्दसे कन्यना (वै० स्त्री०) कन्या माचष्टे, कन्या-णिच् भावे | इसकी उत्पत्ति है। - नारीशाक। १. बन्दा, युच्। कन्या, बेटी, लड़की। बांदा। ११ कन्दगुड़ची, एक गुर्च । १२ मेषादि कन्यला (वै. स्त्रो०) कन्यं कमनीयतां लाति गहाति, हादश राशिके अन्तर्गत षष्ठ राशि। उत्तर फल्गुनौके कन्या-ना-क-टाए। कन्या, बेटी, लड़को। शेष तीन पाद, हस्ताके सम्पूर्ण पाद और चित्रा कन्यस (सं० पु.) कन्यत्वेन सीयते अवसीयते, कन्य नक्षत्रके प्रथम एवं द्वितीय पादपर इस राशिको पव- सो घजथै क। १ कनिष्ठ माता, छोटा भाई। स्थिति रहती है। इसकी अधिष्ठातृदेवता जलके मध्य "रामस्य कन्धमी माता सुमिवा येन सुप्रजाः।" (रामायण ॥३।१८) | नौकारूढ़ा और शस्य एवं अग्निधारिणी हैं। कन्याका (त्रि.) २ अधम, कमौना। ३ अङ्ग लिपरिमाण, अपर नाम पाथेय है। मतान्तरसे इसको शीर्षोदया, गुरभर। दिनबला,, पिङ्गलवर्णा, दक्षिणदिकस्वामिनी, वायु- कन्यमा (स. स्त्री०) कन्यस-टाप् । १ कनिष्ठा प्रकृति, शीतलस्वभावा, शुद्धभूमिचारिणी, वैश्यवर्णा, भगिनो, छोटी बहन। २ कनिष्ठाङ्ग लि, सबसे छोटो। रुक्षा, स्लथाङ्गो, खटच्छब्दा, अल्पसन्ताना और अल्प- उंगली । पुसङ्गा कहते हैं। इस राशिमें जन्म लेनेसे मनुष्य कन्यसी (सं० स्त्री०) कन्यस-डोष । कनिष्ठा भगिनी, वेदशास्त्रमें श्रद्धावान्, यथास्थानके क्रोधपर भी पनु- छोटी बहन। तापकारी, पत्नी के प्रति सर्वदा विरस, नाना शास्त्र "अभिनित् स्पर्ध माना तु रोहिण्या: कन्यसी खमा।" विशारद, सर्वाङ्ग सुन्दर, सौभाग्यशाली और सुरतप्रिय (भारत, वन २२९०१) होता हैं। कन्या (सं० स्त्री०) कन्-यक्-टाए। अन्नपादयश् । उण् ___१३ सुता, बेटी। विवाह व्यतीत कन्याके अन्य ॥१११। १ दशमवर्षीया कुमारी, दश वर्षको लड़को।। संस्कारकालको वृद्धि-वाइका निषेध है। इसका २ अविवाहिता स्त्री, बेव्याही औरत । भारतमें भी नामकरण, अन्नप्राशन एवं चड़ाकरण कार्य विना मन्त्र कन्या शब्दका ऐसा ही अर्थ लगाया है.-"सकलको| निष्पादन करना चाहिये। निष्कामण संस्कार कामना कर सकनेसे अविवाहिता स्त्री को कन्या कहते एकबारगी ही निषिद्ध है। है।" तन्वमें नवकन्याका प्राधान्य वर्णित है- १४ तीर्थविशेष। इस तीर्थमें स्नान करनेसे सहस्र "नटी कापालिको वेश्या रजको नापिताङ्गना। गोदानका फल मिलता है। ब्रामणौ शूद्रकन्या च वथा गोपालकन्यका। "ततो गच्छेत धर्मज्ञ कन्यातीर्थमनुत्तमम् । मालाकारस्य कन्या च नवकन्या प्रकीर्तिताः" कन्यातौ नरः खात्वा गोसहसफलं लभेत् ॥” (मारत श८२१०४) . (गुप्तसाधनतन्त्र १म पटल) | , १५ चतुरक्षरी छन्दोविशेष। इस छन्दमें ग नटी, कापालिकी, वेश्या, रजको (धोबन ), . (एक गुरुवर्ण) और म ( तीन गुरुवर्ण ) अर्थात् चार नापितिनी, ब्राह्मणी, शूद्रा, गोपी (ग्वालिनी) गुरुवर्ण हो रहते हैं। “मोचेत् कन्या।” (उत्तरवाकर ) और मालाकारको कन्या नवकन्या नामसे प्रसिद्ध कन्याका (सं० स्त्री०) कन्येव, कन्या स्वार्थे कन अनुक्ता- है। तन्त्रके मतसे यह कुलानना होती हैं। पुस्कत्वात् न इस्वः। १ कन्या, बैटो। २ कुमारी. ३ स्त्रीमात्र, कोई औरत । ४ घृतकुमारी, घोकुवार। लड़की। ५ स्थलैला, बड़ी इलायचौ। ६ बाराही नाम महा- कन्याकाल (स.पु.) कन्यायाः कालः, -तत्। कन्दयाक, मुयिं-कुम्हड़ा। ७ वन्ध्याकर्कोटकी, मुस- अविवाहिता रनेके नियमका समय, शादी न बर।८ महौषधिविशेष, एक जड़ी-बूटो। सुश्रुत । होनेका वक्त। यह दशम वर्ष पर्यन्त रहता है। .