कन्याकुल-कन्याधन ५ कन्याकुल (सं.पु.) कन्याः कुत्रा यत्र, बहुव्री ।। प्राधारे पत्र । १ चाभ्यन्तर गृह, जनानखाना। १ कान्यकुन देश, कनौजियोंके रहने का मुख्य।। २लम्पट, लडकियों के पीछे-पीछे फिरनेवाला। २ कन्नौज नगर। यह फरुखाबाद जिले में काली कन्चाल (सं.क्लो.) कन्धाया भावः, कन्या-व। नदौके तटपर पवस्थित है। प्राचीनत्वमें पयोध्यासे तस्य भावस्वतली। पा॥११८कन्याका भाव, विकारत । कन्याकुल द्वितीय समझा जाता है। अपने कामुक कन्यादाता (सं० पु.) कन्यादान करनेवाला, जो बेटो अभिलाषके पूर्ण किये न जानेपर वायुने इस नगरके व्याह देता हो। राजा कुशनाभको सौ कन्यावोंको कुन बना दिया था। कन्यादान (स.लो०) कन्याया दान वराय सम्र- ध्वंसावशेषमें वर्तमान लन्दन नगरसे भी अधिक स्थान दानम्। पावके हस्त कन्याका सम्प्रदान, लड़कोको देव पड़ता है। कन्नौज और कान्यकुब्न देखो। .: शादी करने का काम । अग्निपुराण कन्यादानके फला- कन्याकुलदेश (सं० पु.) कान्यकुब्ज नगरको चारो फलपर इस प्रकार लिखता-जो व्यक्ति विवाहकाल औरका प्रान्त, कन्नौज शहर के इर्द-गिर्द का मुल्क। पानेसे उपयुक्त वरको अलता कन्या प्रदान करता, कन्याकुमारी (सं• स्त्री.) १ दुर्गा देवो। २ अन्त इसे शतयनका फल मिलता है। पिपितामह रोपविशेष, एक रास। यह भारतके दक्षिण राम- कन्यादान की कथा सुननेपर सर्व पापसे छट ब्रह्मचोक खरके निकट अवस्थित है। रामेश्वर देखो। पहुंचते हैं। कन्याकूप (सं० पु०) तीर्थविशेष । (भारत, अनु० २५० १०) ब्राझविवाह हारा कन्या देनयर मनुष्य ब्रह्मादि कन्यागत (सं० त्रि.) १ कुमारीसम्बन्धीय, लड़कोसे देव कट क पूजित हो ब्रह्मचोक जाता है। फिर ताल्लुक रखनेवाला । २ कनागत, कन्याराशिपर दिव्य विवाहसे कन्या सम्प्रदान करनेवर सूर्यलोकका पहुंचा हुवा। हार भेद स्वर्ग पहुंचते हैं। कन्यागर्भ (सं० पु०) कन्याया: गर्भः, ६-तत्। प्र ____ गान्धर्व विवाहसे कन्या देनेपर गर्व लोक जा विवाहिता स्त्रीका गर्भ, क्वारी लड़कोका हमल।। देवताको भांति चिरदिन क्रीड़ा करते हैं। जो व्यक्ति कन्यागिरि-मन्द्राज-प्रान्तके नेल्लूर जिले को एक तह शुल्कसह कन्या देता, वह अनन्तकाल किवरों और सोल। इसका क्षेत्रफल ७२६ वगै मोल है। कन्या- गन्धर्वो के साथ क्रीड़ा करने का आनन्द लेता है। गिरि प्रक्षा० १५.१ से १५.३२ उ० और देशा ब्राह्मविवाहमें कन्या देनेसे वरके गह भोजन करना .७e से . ४४ पू०के मध्य अवस्थित है। इसमें निषिद्ध है। जो मोहवयत: भोजन करता, उसे नरक फौजदारी पादालत और थाना मौजद है। जाना पड़ता है। फिर भी दौहित्रको उत्पत्ति प्रधान नगरका नाम भो कन्यागिरि ही है। यह होनेपर खाने-पीने में कोई निषेध नहों। वन्ध्या नगर प्रक्षा० १५० १३० और देशा० ७८°३२ कन्याके गृह चिरदिन भोजन करना न चाहिये। पू०पर अवस्थित है। ई० के १०म शताब्द गजपति- कन्यादूषक (सं० पु.) अविवाहिता बालिकाको वंशीय काकतय रुद्रदेवके पुत्रने इसे बसाया था। ई के बिगाड़नेवाला, जा बैध्याहो लडकोको खरान १६वें शताब्द कृष्णरायने इसको आक्रमण किया। करता हो। पहले यहां अच्छे-अच्छे भवन बने थे। किन्तु हैदर- कन्यादूषण (स'लो.) कन्याया दूषणम्, तत। अलीने उन सबको ध्वस कर डाला। लोकसंख्या अविवाहिता बालिकाका व्यभिचार, बेयाहो-लडकोका प्रायः ३००. है। अधिकांश हिन्द्र देख पड़ते हैं। | बिगाड़। कन्याग्रहण (स. क्लो०) कन्याया ग्रहणम्, ६-तत्। कन्वादोष (सं-पु.) कन्यादृषण देखो। विवाह, शादो। . कन्याधन (सं० को०) कन्याकाले लब धनम, मध्य- कन्याट (सं.पु.) कन्या घटति पत्र, कना-घट- पदलो। अविवाहितावस्थाका स्त्रोधन, सडकोको
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