इलादध-इलायची इलादध (सं० पु०) यज्ञविशेष। विशेषतः शूल, कोष्ठबद्ध, पिपासा, छर्दि एवं वायु इलान्द (सं० लो०) १ उत्सव वा छन्दोविशेष, और छोटी कफ, श्वास, काश, अशः तथा मूत्र- बक ख़ास जलसा या बहर । २ एक सामन् । कृच्छको मिटाती है। इलापत्र (सं० पु०) नागविशेष । इसका पौदा चारसे आठ फोटतक ऊंचा होता इलाम (हिं.) ऐलान् देखो। और सदा हरा-भरा रहता है। इसको मोटो लक- इलायची (हिं० स्त्री०) एला, इलाचो। (Cardamom) डीको जड़ जमीनमें जमतो ओर उसके ऊपरी संस्कृतमें इसे वसुलगन्धा, ऐन्द्रो, द्राविड़ी, कपोत भागसे इधर उधर खड़ी डाली निकलती है। इला- पर्णो, बाला, बलवती, हिमा, चन्द्रिका, सागर | यची पर फल-फल दोनो लगते हैं। भारतवर्षक गामिनी, गान्धालोगर्भा, एलोका और · कायस्था | नाना स्थानों में इलायची उपजतो है। दक्षिणकी ओर कहते हैं। इलायची छोटो और बड़ी या गुज कनाड़े, महिसुर, कोड़ग, तिरुवाकोर और मदुराको राती और पूर्वी दो प्रकारको होती है। छोटौका पावैत्यभूमिमें इसका जङ्गल खड़ा है। इसका वृक्ष चार संस्कृत नाम उपकुञ्जिका, तुत्था, कोरङ्गो, त्रिपुटा, | वर्षमें बढ़ता और सातमें फलता है। फल आनेपर व टिवयस्था, तीक्षागन्धा, सूक्ष्म ला तथा त्रिपुटि और कषक शाखा-प्रशाखासे वोजकोष तोड़ लाते हैं। बड़ौका पृथ्विका, चन्द्रबाला, निष्कुटि, बहुला, स्थूलैला, | भुरभुरे पत्थरको भूमि इसके लिये उपयुक्त है। युरोपमें पहले इलायचो न होती थी। पीके भारत- 'वर्षसे वहां लोग इसे ले गये। मुसलमान वैद्य छोटीको स्त्री और बड़ीको पुजातोय समझते हैं। छोटी इला- यची सफेद रहती, दाक्षिणात्य में उपजती और पान तथा मिठायोमें पड़ती है। यह भी कयौ तरहको होती है-कागजो, मालावरी, गुजराती और सिंहलो आदि। बड़ी नेपाल तथा बङ्गालमें उपजती और दाल- तरकारीके काम आती है। इलायचोको कन्दमूल और वोज दो प्रकारसे तैयार करते हैं। भूमि चिक्कण और उवर रहना चाहिये । अधिक वायु वा ताप लगनेसे वृक्ष मर जाता है। खेतमें इधर-उधर कुछ दूसरे बड़े बड़े वृक्षोंके रहनेसे लाभ होता है। दो तीन वर्षके वृक्षका कन्दमूल भी लगा सकते हैं। गड्डा एक फुट गहरा और अट्ठारह इञ्च चौड़ा होना चाहिये। इसके पौदोंके वीच १२ फोटतक अन्तर रखते हैं। खेतका घासफूस, कङ्कड़-पत्थर और कूड़ाकर्कट साफ कर दिया जाता है। किन्तु चौदा निकल आनेपर इलायचीका नच। निरानेको आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि इला- मालया एवं ताड़काफल आदि है। छोटी और । यचौके नीचे दूसरी चीज़का ऊगना असम्भव है। बड़ी दोनो इलायची वैद्यकमतसे शीतल, तिता, उष्ण, सावधानतासे वीजको डालते हैं। किन्तु वोजको सुगन्धित, हृद्रोगकारक और पित्तरोग, कफ, मल-| गहरेमें बोना अच्छा नहीं। इसे ८ इञ्च बढ़नेपर भेद, वमन एव शुक्रको नाश करनेवाली हैं। बडी। पौदेको उखाड़कर दूसरी जगह लगा देना चाहिये। IMS
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