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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७६२

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७६२ कपालाधिकरण-कपालो "पुरीडाशकपाचन तुषानुपवपति ।" होगा। यदि पुरोडाशके कपालका प्रयोजक होनेका पुरोडाथाकपाल द्वारा तुष परित्याग करना सिद्धान्त ठहरे, तो कहना पड़ेगा-पुरोडाशार्थ पाहत चाहिये। कपालद्वारा तुषका परित्याग चलेगा। फिर जिस ___ इन दोनों श्रुतियोंसे संशय उठता-पुरोडाशपाक यागमें पुरोडाश नहीं रहता, उसमें यदि तुषपरित्याग एवं तुषपरित्याग दोनों कपालके प्रयोजक हैं अथवा करनेको कपाल पाया करता, तो उसे कोई पुरो- केवल पुरोडाशपाक। इस संशयसे तो दोनों ही डाशका कपाल नहीं कहता। क्योंकि यागमें पुरो- कपालके प्रयोजक होते हैं। क्योंकि एकका प्रयोजकत्व डाशका अभाव होनेसे उसके लिये कपालका लाया ठहराने में कोई विशेष हेतु देख नहीं पड़ता। इसी जाना ठीक नहीं ठहरता। ऐसेसे स्थलमें तो केवल पूर्वपक्षका सिद्धान्त करते हैं- तुषपरित्यागके लिये कपाल पाया करता है। अतएव "अर्थाभिधानकर्म च भविष्यवासयोगस्य तबिमितत्त्वात्तदर्थोहि विधी पुरोडाशके लिये न मानेपर कपालसे यन्नात तुष यते।” (मौमांसासू० ४।१।२६) परित्याग करना मना है। यही इस अधिकरणका 'अर्थाभिधान प्रयोजनसम्बन्धमभिधान' तस्य यथा पुरोडाशकपालं इति, | स्थिरोक्त सिद्धान्त है। पुरोडाशार्थ कपाल पुरोडाशकपालम्। कथमेतदवगम्यते ! पुरोडाश- कपालास्त्र (सं० लो०) १ पस्त्रविशेष, एक हथियार। स्तावत् तस्मिन् काले नास्ति। येन वर्तमानः सम्बन्धः कपालन स्थान, तेनेव २ चम, ढाल। हेतुना न भूतः, स एव कपालस्व पुरोडाशैन भविष्यता सम्बन्धः, भविष्यता | कपालास्थि (सं० लो०) स्वनामख्यात शरीरके मध्यका सम्बन्धय तन्निमित्तस्य भवति । तस्मात् पुरोडाशन प्रयुक्त यत् कपालं तैन कपरसदृश एक पस्थि, जिम्मके बीचको एक खपडे- तुषा उपवतव्या:-इति एवच सति चरी पुरोडाशाभावे यदा तुषानुपवप्नु कपालमुपादीयते न तत् पुरोडाशकपालं स्यात्, नचेत्, न तेन तुषा | जेसीडी । जानु, नितम्बमांस, सालु, गण्ड, भड उपवतव्या भवन्ति । तखात् न तुषोपवापः कपालानां प्रयोजकः प्रयोजकन्तु और थिरके अस्थिकी यह संज्ञा है। (सश्चत) अपनं इति' कपालि (स.पु.) कं ब्रह्म शिवः पालयति, क- ____ "पुरोडाशकपालेन तुषानुपवपति" श्रुति वाक्यमें | पाल-इनि। महादेव । जो पुरोडाशके कपालका अभिधान बना, वह प्रयोजन कपालिक (हिं.) कापालिक देखो। विशिष्ट पुरोडाशही प्रयोजन ठना है। जिस समय तुष | कपालिका (सं० स्त्रो०) कपाल-कन्-टाप अत इत्वम्। परित्याश किया जाता, उसी समय पुरोडाश निकल १ कपर, खपड़ा। २ घटादिका उभय मृत्तिकाखण्ड, नहीं पाता। फिर उससे पूर्व भी पुरोडाश कहां हुवा घड़े की मिट्टीका एक हिस्सा । ३ दन्तरोगविशेष. था! किन्तु पीछे पुरोडाश होगा। पतएव भावी दांतोंको एक बीमारी। पुरोडाशके साथ कपालका सम्बन्ध इस श्रुतिसे "दलन्ति दन्तवल्कानि यदा शर्करया सह। मानना पड़ेगा। भविष्यत् वस्तुका सम्बन्ध उसी शेया कपालिका सव दशनानां विनाशिनी ॥” (सुश्रुत ) वस्तुके निमित्त रहता है। (पुरोडाशरूप भविष्यत् शर्करा नामक रोगके पोछे दन्तसे सकल शर्करा वस्तुका सम्बन्ध वर्तमान कपालमें होता है) पुरोडाश छूट पड़ते समय वल्क भी दलित हो मिट जाता है। कपाल शब्दका पथ पुरोडाशके लिये पानीत कपाल इस रोगका नाम दन्तशर्करा भी है। है। सुतरां शब्द हारा ही समझ पड़ता-पुरोडाश .. चिकित्सादि दन्तरोगमै देखो। कपालका प्रयोजक लगता है, तुषपरित्याग कपालका कपालिनी (सं. स्त्रो०) कपालिन्-डोप । १दुर्गा । प्रयोजक नहीं ठहरता। मीमांसादर्शनके मतसे २ नोच जातिको स्त्री। ब्राह्मणोके गर्भ पोर धौवरके जिस कार्यके लिये जो उपादान किया जाता, वही पौरससे उत्पन्न स्त्री कपालिनी कहाती है । कार्य उसका प्रयोजक कहाता है। इस स्खलमें पाकके | कपाली (सं• पु०) कपालो ऽस्वास्ति, कपाल इनि। लिये उपादान होनेसे कपालका प्रयोजक पुरोडाश १ महादेव। २ जातिविशेष, एक कोम। यह जाति