पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७६१

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कपालक-कपाखाधिकरण ७६१ ५ मृत्तिका हारा निर्मित घटादिके दो भागों में एक, । का एक मेद है। इसको करनेसे कपास प्रकाशमान मट्टीसे बने घड़े वगैरहके दो टुकड़ोंमें एक। ६ भिक्षा- | रहता है। पात्र, भीख मांगनेका एक बर्तन। • मृत्तिकापान, कपालमृत (सं० पु.) कपालं भिक्षापावं ब्रह्माकपालं खपड़ी। ८ कुष्ठरोगविशेष, किसी किस्मका कोढ़ || वा विभर्ति, कपाल-भ-क्लिप-तुक् च । शिव, महादेव । यह कुष्ठ कृष्ण वा अरुणवयाँ, कपालतुल्य, रक्ष, कर्कश, कपालमाली (स.पु.) कपालानां माता विद्यते तनु भौर पौड़ाकर होता है। इसको विषम | समझना चाहिये। (भावप्रकाश) . पुरोडाशपाव, पहननेवाले महादेव। यज्ञीयकृत रखनेका बर्तन। १. समूह, ढेर। कपालमोचन (स'• को०) कपाल मुच्-त्यः । ११अण्डादिका अवयव, पण्डेका छिलका। १ काशीस्थ तीर्थविशेष। (काशौख ३१०) मतान्तरसे “कुछ टाछ कपालानि सुमनोमुकुलानि च।" (सुन्वत) । रामचन्द्रने दण्डकारख में किसी राचसका मस्तक -- १२ श्रावरण, ढक्कन। १३ खोपड़ी। १४ सन्धि काटा था। किन्तु मस्तकका कपाल महोदर नामक विशेष, एक सुलह । यह बराबरकोशी पर होती है। ऋषिके उरुदेश में जाकर विद हुवा। फिर मुनियोंके १५ कच्छपका पावरण, कछवेको खोल। उपदेशानुसार जब उन्होंने प्रौशनसतीर्थ में मान किया, कपालक (हिं.) कापालिक देखो। तब उक्त कपाल वहीं गिर पड़ा। इसोसे उस कपालकुष्ठ (सं० ली.) महाकुष्ठभेद, किसी किस्मका | स्थानका नाम कपालमोचन है। २ अम्बालेके बड़ा कोढ़। कपाल देखो। पूर्वस्थित एक पुखतीर्थ। इस खानके तीर्थजसमें कपालकेतु (सं.पु.) केतुविशेष, एक पुच्छलतारा।। खान करनेसे अशेष पुण्यलाभ होता है। यहां प्राचीन इसका पुच्छ धम्रवर्ण और प्रकाशमान रहता है। गुप्त राजावोंको शिलालिपि मिली है। अमावस्या इसके उदयका दिन है। यह आकाशके कपालरोग (सं० पु०) शिरोरोग, सरकी बीमारी। पूर्वार्ध में प्रवस्थान करता है। इसके उदय होनेसे कपालशिरा (स' पु०) कपालं शिरसि यस्थ, बहुव्री। दुर्भिक्ष पड़ता और पानी नहीं बरसता। (हत्स हिवा) | १महादेव। २ कोई मुनि । कपालक्रिया (सं० स्त्री.) मृतककत्यविशेष, मुर्दा | कपालसन्धि ( पु.) कपासस्थः सन्धिः, मध्य- जलते वक्त किया जानेवाला एक काम। इसमें जलते पदलो।१मस्तकके अखिका मिलनखान, खोपड़ीको शवका कपास बांस या किसी दूसरी लम्बी और पतली | हड्डौका जोड़। २ सन्धिविशेष, एक सुखह। यह लकड़ोसे फोड़ा जाता है। सम व्यवहारपर होती है। कपालचर्ण (म. ली.) नृत्यविशेष, एक नाच। कपालस्फोट (स.पु.) कपालस्य स्फोटः, ६-तत् । इसमें शिरके बन्न पैर ऊपर उठा घूमा करते हैं। १मस्तकका स्फोट, खोपड़ेका फोड़ा। २ राक्षस- कपासतीर्थ-तीर्थ विशेष। इस स्थानपर वेधनाशन | विशेष । नामक ईश्वरको मूर्ति विद्यमान है। (प्रभासखस १३ ।।४)| कपालाधिकरण (सं० लो.) मीमांसादर्शनोक्त एक कपालनालिका (सं० स्त्री.) कपालस्य सूत्रसङ्घस्य अधिकरण। मीमांसासूत्रपर चतुर्थ अध्यायके प्रथम नालिका, ६-तत्। तकुटी, तकला, तकवा, दूक । । पादमें यह विषय वर्णित है। दर्शपौर्णमासप्रकरणीय कपालपाणि (सं.वि.) कपाले पापियस्य, बहुव्री।। श्रुतिमें कहा है- . “कपाधु पुरोडाशं अपयति ।' १ ललाटदेशमें हाथ लगाये हुवा, जो माथे पर हाथ रखे हो। २ हाथमें कपाल लिये हुवा, जो भिक्षा दर्श एवं पौर्णमास यागके अङ्गीभूत पुरोडाशको लेने के लिये हाथमें खप्पर रखता हो। कपालमें पकाना चाहिये। फिर उसी प्रकरणको कपालभाती (सं० स्त्री०) तपोविशेष । यह प्राणायाम- पन्ध अतिमें भी बताया है- Vol. III . 191