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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७६५

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कपित्यक-कपिस्विनी ०६५ रेजी में वैज्ञानिक नाम फेरोनिया एलिफाण्टम् , कपिस्वतैल (सं• लो०) कपिलवोनतेल, केके ( Feronia Elephantum) है। तुख मका तेल। यह तुवर, स्वाद और पाखुविषापह • यह भारतवर्ष के नाना स्थानों में उत्पन्न होता है। होता है। (वैद्यावनिचर) बम्बइमें इसे लगाया करते हैं। एक एक वृक्ष अति- कपित्थत्वक् (स• लो०) कपिस्वस्थ त्वगिव त्व शय वृहत् होता है। इसका काष्ठ सुदृढ़, स्थायी यस्य, मध्यपदलो। १ एलवालुक, एक खुशबूदार और देखने में सादा रहता है। विशाखपत्तनमें इसके चौज़। २ कैधेको छाल। काष्ठसे गृहका निर्माणकार्य चलता है। कपिस्वपवा, कपित्वपर्ण देखो। भावमिश्व कच्चे कैथेको धारक, कषायरस, लघु कपित्थपर्णी (सं० स्त्रो०) कपियस्व पर्णमित्र पर्व पौर लेखनगुणयुक्ता बताते हैं। फिर पक्का कैथा गुरु, | पत्रं यस्याः, बहुवो। वृचविशेष, एक पेड़। महा- अन्नकषायरस, कण्ठपोषक एवं दुष्यच्य और पिपासा, राष्ट्र में इसे कंवटपनी कहते हैं। इसका संस्थान हिका, वायु तथा पित्तनाशक होता है। पर्याय-विराजा, सुरमा और चित्र पत्रिका है। यह कपित्यके पत्रका सखात नाम कपित्थपती, फणिज, तीक्षा, उष्ण, पाकमें कट, तुवर एवं रस में सिक पोर कुलिजा पौर जीवपत्रिका है। वैद्यशास्त्रके मतसे यह | अमि, कफ, मेद, मेह तथा सायुरोगनायक है। पत्ती तीक्ष्ण, उष्ण और कफ, मेह एवं विषहर होती है। (वैद्यकनिषष्ठ) ___ हकीम कैथेको शीतल, शुष्क, तेजस्कर, तीक्ष्ण, | कपित्यानी (सं. स्त्री०) कपित्थरबा, गधविरजाचा बसकारक, कफनि:सारक, कण्ठ गोथमें हितकर और पेड़। दन्तमूलदृढ़ कारक समझते हैं। इसका शर्बत भूक कपिरथाम (सं• पु.) प्राममेद, कियो किमका बढ़ाता और तरह-तरहको बीमारियां हटाता है। पाम । पत्र पतिशय तीव्र है। विषाक्त कौटपतङ्गादिक | कपित्थार्जक (सं० पु.) खेताज, सफेद बबई । काटनेसे पत्रका कोमलांश वा शस्य दष्ट स्थानमें | २ तुलसीभेद, किसी किस्म की तुलसी। लगाने पर उपकार पहुंचता है। शस्य न मिलनेसे कपित्थाष्टक चूर्ण (सं. क्लो. ) अतीसार रोगका एक इसकी छाल कूट-पीस प्रयोग करना चाहिये। वैद्यको औषध, दस्त को एक दवा। अजवायन, कपित्थसे उत्कृष्ट गोंद निकलता, बम्बई अञ्चल के पिपरामूल, दालचीनी, इलायचो, तेजपात, नागकेयर बाज़ारोंमें बिकता है। दक्षिणाञ्चलमें सब लोग | सोंठ, कालीमिर्च, चौत, सुगन्धवाला, कालाजीरा, उसे व्यवहारमें लाते हैं। तामिलके कविराज धनिया तथा सोचर नमक एक-एक भाग एवं अन्वमें एकाएक वेदना उठनेसे केथेका गोंद प्रयोग | इमली, धायके फूल, पीपल, बेनसोंठ, अनार करते हैं। तीन-तीन भाग, चोनो भाग और कैथा ८ भाग २ हस्त एवं अङ्गलिका एक विलक्षण संस्थान, | एकत्र मिला खानेसे प्रतीसार, यहणो, क्षयरोग, गुल्म, हाथों और उंगलियों की एक अनोखी सूरत। यह गलराग, कास, खास, अरुचि तथा हिकरोग भाव नृत्यमें अङ्गुष्ठ पौर तर्जनीका अग्रभाग मिलानसे | निवारित होता है। (चक्रगविदचात मया) भाता है। ३ कुशदीपवाले राजा ज्योतिभान्के पुत्र। कपिस्वास्थ (सं० पु०) कपित्थवत् मोलाकारं पास्वं (विशपु०, १ चश, ४ ० ) ४ अश्वत्थवृक्ष, पौपलका पेड़। मुखं यस्थ, बहुब्रो । १ वानरविशेष, एक बन्दर । इसका मुंह कैथे-जैसा मोल होता है। २ मृगविशेष, (को०) ५ कपित्थफल, कैथेका फल । कपित्थक (स• पु०-क्लो०) १ कपित्थ, कैथा। एक चौपाया। कपिस्विनी (सं• स्त्रो०) कपित्यो ऽस्त्वत्र देश, कपित्थ- २ अश्वत्थक्ष, पीपलका पेड़। ३ भवन्तिका एक स्थान, उज्जैनकी एक जगह। | इन्-डोष्। पुरादिश्यो देश। पा रा१३५ । १ कपित्वयुक्त - Vol. , IIL 192