पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/९५

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ई-हिन्दी वर्णमालाका चतुर्थं स्वरवर्ण । यह इकारका। तकलीफ ! ५ प्रत्यक्ष ! प्रांखके सामने ! ६ सविधि ! दीर्घ रूप है। तालुसे निकलने के कारण इसे तालव्य वर्ण नजदीकी! (स्त्री० ) अस्य विष्णोः पत्नी, अ-डीप। कहते हैं। ईका उच्चारण कभी दोघे और कभी प्लत | ७ लक्ष्मी। ८ माया। (पु.) ८ शान्ति। १० होता है। तन्त्रके मतसे यह कुण्डलिनी है। ब्रह्मा, कामदेव । ११ गोविन्द । १२ त्रिमूर्तीश । १३ वाम- विष्णु, शिव प्रभृति देव इसमें रहते हैं। इसको लोचन । १४ नृसिहास्त्र । १५ सुरेश्वर। १६ कन्या- उपासनासे चतुर्वर्ग फल मिलता है। (कामधेनतन्त्र ) । युग्म। १७ ककैट। वर्णीऔरतन्त्रक मतसे ई लिखनेका नियम यह है,- ईगुर (हिं० पु.) सिन्दूर, शिरफ, लालसोस । यह ऊपर-नीचे और मध्यदिक पर यह कुञ्चित होता भारतमें बनता और बाहरसे भी आता है। गलते है। अधोगत तीन कोण रहते, जो दक्षिण दिकसे | सोसको वायुप्रवाहमें रखनेसे ईगुर तैयार होता है। जपरको सिकुड़ते हैं। जपरी दक्षिण कोणपर यह विशेषतः महावीर पर चढ़ता है। सौभाग्यवती कोणयुक्त एक दूसरी रेखा कुञ्चित भावसे खींचना स्त्री अपनी मांग इससे भरती हैं। ईगुरसे पारा भी पड़ती है। ईमें चन्द्र, सूर्य और अग्नि विद्यमान निकालते हैं। सिन्दूर और हिङ्गल देखो। हैं। इसकी मात्रा शक्ति है। (वर्णोद्धारतन्त्र ) ईको ईघे (हिं.क्रि.वि.) इधर, यहां, इस ओर । तन्त्रमें त्रिमूर्ति, महामाया, लौलाक्षी, वामलोचन, ईचना (हिं० क्रि०) १ अञ्चन करना, खींचना। गोविन्द, शेखर, पुष्टि, सुभद्रा, रत्नसंचा, विष्णु, | २ लिखना, घसीटना। ३ असि निकालना, तलवारको लनी, प्रहास, वाग्विशुद्ध, परापर, कालोतरीय, म्यानसे बाहर करना। ४ फांसी चढ़ाना। ५ शोषण भेरुण्डा, रीति, पौण्डवर्धन, शिवोत्तम, शिवा, तुष्टि, करना, सोख लेना। ६ पान करना, दम लेना, चतुर्थी, विन्दु, मालिनी, वैषणवी, वैन्दवी, जिह्वा, पोना। ७ ग्रहण करना, ऐंठ लेना। प्रख छोड़ना, कामकला, सनादका, पावक, कोटर, कोति, मोहिनी, दाब रखना। ८ बांधना, अंगेजना। कालकारिका, कुचहन्द, तर्जनी, शान्ति और त्रिपुर-ईचमनौती (हिं. स्त्री०) भूमिपतिका अपने कृषकके सुन्दरी भी कहते हैं। माहकान्यासमें इसका स्थान महाजनसे कर ग्रहण करना। कृषक भूमिकर देनेमें वामचक्षु है। ( नमो वामचक्षुसि ) असमर्थ होनेसे ज़मीन्दार महाजनसे वह धन लेता है हिन्दीमें ई प्रत्ययका काम भी देती है। इसके और उसके खाते में कृषकके नाम जमा करा देता है। सहारे विशेष्य और विशेषण दोनो बनते हैं। इसीका नाम ईचमनौती है। जैमे-बेटासे बेटी और लेटासे लेटौ। कभी-कभी ईट (हिं. स्त्री०) १ इष्टका, मट्टीका टुकड़ा। यह विशेष्यके अन्तमें लगनेसे विशेषण और विशेषणके | चौखंटी और लम्बी रहती तथा सांचौ ढलती है। अन्तमें ई लगनेसे विशेष्य हो जाता है। जैसे- ईट कच्ची और पक्को दो तरहकी होती है। पक्को चालसे चाली और लालसे लाली। ईट पजावेमें पकती है। इसे लखोरी, नम्बरी पौर ई (सं० भव्य०) १ विषाद। अफसोस ! हाय ! | पुट्ठी कहते हैं। लखौरी पतली और छोटी होती है। २अनुकम्पा ! रहम !३ क्रोध ! गु.स्मा! ४ दुःखानुभव।। इसका चलम अब बन्द हो गया है। पुराने समय