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बहुवचन का प्रयोग करते हैं; जैसे, "हमने एकही बात को दो दो तीन तीन तरह से लिखा है।" (स्वा°) हम पहले भाग के आरंभ में लिख आए हैं।" (इति°)।

(आ) बड़े बड़े अधिकारी और राजा-महाराजा; जैसे, "इसलिए अब हम इश्तिहार देते हैं"। (इतिः)। "ना°—यही तो हम भी कहते हैं।" (सत्य°)। "दुष्यंत—तुम्हारे देखने ही से हमारा सत्कार हो गया।" (शकु°)।

(इ) अपने कुटुंब, देश अथवा मनुष्य-जाति के संबंध में; जैसे, "हम योग, पाकर भी उसे उपयोग में लाते नहीं।" (भारत°)। "हम बनवासियों ने ऐसे भूषण आगे कभी न देखे थे।" (शकु°)। "हवा के बिना हम पल भर भी नही जी सकते।"

(ई) कभी कभी अभिमान अथवा क्रोध में; जैसे, "वि°—हम आधी दक्षिणा लेके क्या करे।" (सत्य°)। "माढव्य-इस मृगया-शील राजा की मित्रता से हम तो बड़े दुखी हैं।" (शकु°)।

[सूचना—हिंदी में "मैं" और "हम" के प्रयोग का बहुतसा अंतर आधुनिक है। देहाती लोग बहुधा 'हम' ही बोलते हैं, "मैं" नहीं बोलते। प्रेमसागर और रामचरितमानस में 'हम' के सब प्रयोग नहीं मिलते। अँगरेजी में "मैं" के बदले 'हम' का उपयोग करना भूल समझा जाता है; परंतु हिंदी में "मैं" के बदले "हम" बहुधा आता है।

"मैं" और "हम" के प्रयोग में इतनी अस्थिरता है कि, एक बार जिसके लिए "मैं" आता है, उसके लिए उसी अर्थ में फिर "हम" का उपयोग होता है। जैसे, "ना°—राम राम! भला, आपके आने से हम क्यों जायँगे? मैं तो जाने ही को था कि इतने में आप आ गये।" (सत्य°)। "दुष्यंत—अच्छा, हमारा संदेसा यथार्थ भुगता दीजो। मैं तपस्वियों की रक्षा को जाता हूं।" (शकु°)—। यह न होना चाहिये।]

(उ) कभी कभी एकही वाक्य मैं "मैं" और "हम" एकही पुरुष