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है ?” ( शकु०)। “दुष्यंत-सखा, तुझसे भी तो माता पुत्र कहकर बोली हैं”। ( तथा )।

[ सूचन---छोटी अवस्था के भाई-बहिन आपस में “तू" का प्रयोग करते है । कहीं कहीं छोटे लड़के प्यार में मां से “तू” कहते हैं ।]

(ई) अवस्था और अधिकार में अपने से छोटे के लिए (परिचय में); जैसे, “रानी-मालती, यह रक्षा-बंधन तु सम्हालके अपने पास रख ।" ( सत्य० )। “दुष्यंत-( द्वारपाल से ) पर्वतायन, तू अपने काम में असावधानी मत करियो ।” ( शकु० )

(उ) तिरस्कार अथवा क्रोध में किसीसे; जैसे, "जरासंघ श्रीकृष्ण-चंद से अति अभिमान कर कहने लगा, अरे--तू मेरे सोंंही भाग जा, मैं तुझे क्या मारूं।” ( प्रेम०)। वि०–“बोल,अभी तैने मुझे पहचाना कि नहीं !” ( सत्य० ) ।

१२०–तुम-मध्यमपुरुष ( बहुवचन )।

यद्यपि 'हम' के समान 'तुम' बहुवचन है, तथापि शिष्टाचार के अनुरोध से इसका प्रयोग एक ही मनुष्य से बोलने में होता है । बहुत्व के लिए 'तुम' के साथ बहुधा ‘लोग' शब्द लगा देते हैं; जैसे,"मित्र, तुम बड़े निठुर हो।” (परी०)। “तुम लोग अभी तक कहाँ थे ?"

(अ) तिरस्कार और क्रोध को छोड़कर शेष अर्थों में “तू" के बदले बहुधा "तुम” का उपयोग होता है, जैसे, “दुष्यंत हे रैवतक,तुम सेनापति को बुलाओ।” (शकु०)। "आशुतोष तुम अव-ढर दानी ।” ( राम०')। "उ०—पुत्री, कहो तुम कौन कौन सेवा करोगी ।” ( सत्यं० )।

(आ) 'हम' के साथ 'तू' के बदले 'तुम' आता है, जैसे, ""दोनों प्यादे-तो तू हमारा मित्र है। हम तुम साथ ही साथ हाट को चलें ।" ( शकुं० )।