पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१११)

लेखकोंं की मातृभाषा हिंदी नहीं है। पहले हम इन व्याकरणों में दी हुई सर्वनामों की संख्या का विचार करेंगे ।

सर्वनामों की संख्या "भाषा-प्रभाकर" में आठ, "हिंदी व्याकरण' में सात और "हिंदी बाल-बोध व्याकरण" में कोई सत्रह हैं । ये तीनों व्याकरण औरों से पीछे के हैं, इसलिए हमें समालोचना के निमित्त इन्हींकी बातों पर विचार करना है । इनके सिवा अधिक पुस्तकों के गुण-दोष दिखाने के लिए इस पुस्तक में स्थान की संकीर्णता है ।

( १ ) भाषा-प्रभाकर--मै, तू, वह, यह, जो, सो, कोई, कौन ।

( २ ) हिन्दी-व्याकरण -मैं, तू, आप, यह, वह, जो, कौन ।

( ३ ) हिन्दी-बालबोध-व्याकरण-मैं, तू, वह, जो, सो, कौन, क्या,

यह, कोई, सब, कुछ, एक, दूसरा, दोनों एक दूसरा, कई एक, आप ।

"भाषा-प्रभाकर" में क्या", "कुछ" और "आप" अलग अलग सर्वनाम नहीं माने गये हैं, यद्यपि सर्वनामों के वर्णन में इनका अर्थ दिया गया है। इसमें भी “आप" का केवल आदर-सूचक प्रयोग बताया गया है। फिर आगे अव्ययों में "क्या" और "कुछ" का उल्लेख किया गया है, परंतु वह भी इनके संबध में कोई बात स्पष्टता से नहीं लिखी गई । ऐसी अवस्था में समा-लोचना करना वृथा है ।

“हिदी-ब्याकरण" में “सो', 'कोई", "क्या” और “कुछ" सर्वनाम नहीं माने गये है। पर लेखक ने पुस्तक में सर्वनाम को जो लक्षण* दिया है। उसमें इन शब्दों का अंतर्भाव होता है, और उन्होंने स्वयं एक स्थान में (पृ० ८१ ) “कोई" को सर्वनाम के समान लिखा है, फिर न जाने क्यों यह शब्द भी सर्वनामों की सूची में नहीं रखा गया ? 'क्या' और 'कुछ' के विषय में अव्वय होने की संभावना हो भी सकती है, पर “सो" और "कोई" के विषय में किसी को भी संदेह नहीं हो सकता , क्योंकि इनके रूप और प्रयोग "वह”, “जो", “कौन” के नमूने पर होते हैं। जान पडता है कि मराठी में "कोण" शब्द प्रश्नवाचक और अनिश्चयवाचक दोनों होने के कारण लेखक ने “कोई" को “कौन" के अतर्गत माना है, परंतु हिंदी में "कौन" और “कोई" के रूप और प्रयोग अलग अलग है। लेखक ने कोई १५० अव्ययों की सूची में “कुछ", "क्या" और "सो" लिखे है, पर इन बहुत-से शब्दों में केवल दो या तीन के प्रयोग बताये गये है, और उनमें भी "कुछ",


“सर्वनाम उसे कहते हैं जो नाम के बदले में आया हो ।”