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पाँच पाँच भेद माने गये हैं, पर दोनोंं में निजवाचक सर्वनाम न अलग माना गया है और न किसी भेद के अतर्गत लिखा गया है। यद्यपि सर्वनामों के विवेचन में इसका कुछ उल्लेख हुआ हैं, पर वहा भी “आदर-सूचक" के अन्यपुरुष का प्रयोग नहीं बताया गया। हम इस अध्याय में बता चुके हैं कि हिंदी में "आप" एक अलग सर्वनाम है जो मूल में निजवाचक है और उसका एक प्रयोग आदर के लिए होता है। दोनों पुस्तको में "सो" संबंध वाचक लिखा गया है, पर यह सर्वनाम “वह" का पर्यायवाची होने के कारण यथार्थ में निश्चय-वाचक है और कभी कभी यह सबंध-वाचक सर्वनाम "जो” के बिना भी आता है ।

- "हिंदी-व्याकरण” में संस्कृत की देखादेखी सर्वनामों के भेद ही नहीं किये गये है, पर एक दो स्थानो में ( पृ॰ ६०-६१ ) “निज सूचक आप" शब्द का उपयोग हुआ है जिससे सर्वनामों के किसी न किसी वर्गीकरण की आवश्यकता जान पड़ती है। फिर न जाने लेखक ने इसका वर्गीकरण क्यों अनावश्यक समझा १]

१४१-“यह", “वह", “सो", “जो" और “कौन" के रूप “इस," “उस," “विस", जिस" और किस" के अंत्य “स” के स्थान में "तना" आदेश करने से परिमाण-वाचक विशेषण और “इ” को “ऐ" तथा "उ" को "वै" करके "सा" आदेश करने से गुणवाचक विशेषण बनते हैं। दूसरे सार्वनामिक विशेषणों के समान ये शब्द भी प्रयोग में कभी सर्वनाम और कभी विशेषण होते हैं। कभी कभी ये क्रिया-विशेषण भी होते हैं। इनके प्रयोग आगे विशेषण के अध्याय में लिखे जायेंगे ।