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संबंध-वाचक सर्वनाम और "सो" निश्चयवाचक सर्वनाम है। यदि, परंतु, किंतु आदि शब्दों का प्रयोग "रामचरितमानस" और "प्रेमसागर" में नहीं पाया जाता है।

[टी०—संबंध-सूचकों के समान समुच्चयबोधकों का वर्गीकरण भी व्याकरण की दृष्टि से आवश्यक नहीं है। इस वर्गीकरण से केवल उनके भिन्न भिन्न अर्थ वा प्रयोग जानने में सहायता मिल सकती है। पर ससुच्चय-बोधक अव्ययों के जो मुख्य वर्ग माने गये है उनकी आवश्यकता वाक्य-पृथकू-करण के विचार से होती है, क्योंकि वाक्य-पृथक-करण वाक्य के अवयवों तथा वाक्यो का परस्पर संबंध जानने के लिए बहुत ही आवश्यक है।

समुच्चय-बोधकों का सबंध वाक्य-पृथक्-करण से होने के कारण यहाँ इसके विषय में संक्षेपतः कुछ कहने की आवश्यकता है।

वाक्य बहुधा तीन प्रकार के होते है—साधारण, मिश्र और संयुक्त। इनमें से साधारण वाक्य इकहरे होते है, जिनमें वाक्य-संयोग की कोई आवश्यकता ही नहीं है। यह आवश्यकता केवल मिश्र और संयुक्त वाक्यों में होती है। मिश्र वाक्य में एक मुख्य वाक्य रहता है और उसके साथ एक या अधिक आश्रित वाक्य आते हैं। संयुक्त वाक्य के अंतर्गत सब वाक्य मुख्य होते है। सुख्य वाक्य अर्थ में एक दूसरे से स्वतंत्र रहता है, परंतु आश्रित वाक्य मुख्य वाक्य के ऊपर अवलंबित रहता है। मुख्य वाक्यों के जोड़नेवाले समुच्चयबोधकों के समानाधिकरण कहते है, और मिश्र वाक्य के उपवाक्यों को जोड़नेवाले अव्यय व्यधिकरण कहाते हैं।

जिन हिंदी-व्याकरण में समुच्चय-बोधकों के भेद माने गये हैं उनमें से प्राय सभी दे। भेद मानते हैं—(१) संयोजक और (२) विभाजक। इन भेदों का अर्थ किसी भी पुस्तक में नहीं समझाया गया और न सब अव्यय इन दोनों भेदों में आ सकते हैं। इसलिए यहाँ इन भेदों पर विशेष विचार करने की आवश्यकता नहीं है।

"भाषातत्वदीपिका" में समुच्चय-बोधकों के केवल पाँच भेद माने गये हैं जिनमें और कई अव्ययों के सिवा "इसलिए" का भी ग्रहण नहीं किया गया। यह अव्यय आदम साहब के व्याकरण को छोड और किसी व्याकरण में नहीं आया जिससे अनुमान होता है कि इसके समुच्चयबोधक होने में संदेह है। इस शब्द के विषय में हम पहले लिख चुके हैं कि यह मूल अव्यय नहीं है, किंतु