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में आता है और जो "अप" में, संबंध-कारक की "ना" विभक्ति जोड़ने से बना है। इसके साथ "ने" विभक्ति नहीं आती; परंतु दूसरी विभक्तियों के योग से इसका रूप हिदी आकारांत संज्ञा के समान "अपने" ही जाता है। कर्त्ता और संबंध-कारक को छोड़ शेष कारकों में विकल्प से "आप" के साथ विभक्तियाँ जोड़ी जाती हैं।

[सं॰—"आप" शब्द का संबंध-कारक "अपना" प्राकृत की षष्ठी "अप्पणो" से निकला है।]

निजवाचक "आप"

कारक एक॰
कर्ता आप
कर्म—संप्र॰ अपनेको, आपको
करण—अपा॰ अपनेसे, आपसे
संबंध अपना-ने-नी
अधिकरण अपनेमें, आपमें
(अ) कभी कभी "अपना" और "आप" संबंध-कारक को छोड़ शेष कारकों में मिलकर आते हैं; जैसे, अपने-आप, अपने-आपको, अपने-आपसे, अपने-आपमें।
(आ) "आप" शब्द का एक रूप "आपस" है जिसका प्रयोग केवल संबंध और अधिकरण-कारकों के एकवचन में होता है, जैसे "लड़के आपस में लड़ते हैं।" स्त्रियोँ की आपस की बातचीत।" इससे परस्परता का बोध हेता है। कोई कोई लेखक "आपस" का प्रयोग संज्ञा के समान करते हैं, जैसे, "(विधाता ने) प्रीति भी तुम्हारे आपस में अच्छी रक्खी है।" (शकु॰)।
(इ) "अपना" जब संज्ञा के समान निज लोगों के अर्थ में आता है तब उसकी कारक-रचना हिंदी आकारांत संज्ञा के समान