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( १ ) आर्य-भाषाएँ—इस भाग में संस्कृत, प्राकृत (और उससे निकली हुई भारतवर्ष की प्रचलित आर्य-भाषाएँ), अँगरेजी, फारसी, यूनानी, लैटिन, आदि भाषाएँ हैं।

( २ ) शामी भाषाएँ—इसमें इब्रानी, अरबी और हब्शी भाषाएँ हैं।

( ३ ) तूरानी भाषाएँ—इस वर्ग में मुगली, चीनी, जापानी, द्राविड़ी (दक्षिणी हिंदुस्थान की भाषाएँ), तुर्की, आदि भाषाएँ हैं।

(२) आर्य-भाषाएँ।

इस बात का अभी तक ठीक ठीक निर्णय नहीं हुआ है कि संपूर्ण आर्य-भाषाएँ—फारसी, यूनानी, लैटिन, रूसी, आदि—वैदिक संस्कृत से निकली है अथवा और और भाषाओं के साथ साथ यह पिछली भाषा भी किसी आदिम आर्य-भाषा से निकली है। जो हो यह बात अवश्य निश्चित हुई है कि आर्य-लोग, जिनके नाम से उनकी भाषाएँ प्रख्यात हैं, आदिम स्थान से इधर उधर गये और भिन्न भिन्न देशों में उन्होंने अपनी भाषाओं की नींव डाली। जो लोग पश्चिम को गये उनसे ग्रीक, लैटिन, अँँगरेजी, आदि आर्य-भाषाएँ बोलनेवाली जातियों की उत्पत्ति हुई। जो लोग पूर्व को आये उनके दो भाग हो गये। एक भाग फारस को गया और दूसरा हिंदूकुश को लाँघ कर काबुल की तराई में होता हुआ हिंदुस्थान पहुँचा। पहले भाग के लोगों ने ईरान में मीडी (मादी) भाषा के द्वारा फारसी को जन्म दिया और दूसरे भाग के लोगों ने संस्कृत का प्रचार किया जिससे प्राकृत के द्वारा इस देश की प्रचलित आर्य-भाषाएँ निकली हैं। प्राकृत के द्वारा संस्कृत से निकली हुई इन्हीं भाषाओं में से हिंदी भी है। भिन्न भिन्न आर्य-भाषाओं की समानता दिखाने के लिए कुछ शब्द नीचे दिये जाते हैं—