चरम-प्रत्यय नहीं हैं; क्योंकि उनके पश्चात् दूसरे प्रत्यय आ सकते हैं। उदाहरण के लिये "चतुराई" शब्द में "आई" प्रत्यय है और इस प्रत्यय के पश्चात् 'से' 'को', आदि प्रत्यय लगने से "चतुराई से" "चतुराई को" आदि शब्द सिद्ध होते हैं, पर "से" "को", आदि के पश्चात् "आई" अथवा और कोई व्युत्पत्ति-प्रत्यय नहीं लग सकता।
यौगिक शब्दों में जो अव्यय हैं (जैसे, चुपके, लिये, धीरे, आदि) उनके प्रत्ययों के आगे भी बहुधा दूसरे प्रत्यय नहीं आते, परंतु उनके चरम-प्रत्यय नहीं कहते, क्योंकि उनके पश्चात् विभक्ति का लोप हो जाता है। सारांश यह है कि कारक-प्रत्यय और काल-प्रत्ययो ही के चरम-प्रत्यय कहते है।
सू॰—एक अक्षर का शब्द भी होता है, और अनेक अक्षरे के उपसर्ग और प्रत्यय भी होते है, इसलिए बाह्य स्वरूप देखकर यह बताना कठिन है कि शब्द कौनसा है और उपसर्ग अथवा प्रत्यय कैनसा है। ऐसी अवस्था में उनके अर्थ के अंतर पर विचार करना आवश्यक है। जिस अक्षर या अक्षरसमूह में स्वतंत्रतापूर्वक कोई अर्थ पाया जाता है उसे शब्द कहते है, और जिस अक्षर या अक्षर-समूह में स्वतंत्रतापूर्वक कोई अर्थ नहीं पाया जाता अर्थात् स्वतंत्रता-पूर्वक जिसका प्रयोग नहीं होता और जेर किसी शब्द के आश्रय से उसके पीछे अथवा आगे आकर अर्थवान होता है, उसे प्रत्यय अथवा उपसर्ग कहते हैं।
४३१—उपसर्ग प्रत्यय और समास से बने हुए शब्दों के सिवा हिंदी मे और दो प्रकार के यैगिक शब्द हैं जे क्रमशः पुनरुक्त और अनुकरण-वाचक कहलाते हैं। पुनरुक्त शब्द किसी शब्द के दुहराने से बनते हैं, जैसे, घर-घर, मारामारी, कामधाम, उर्दू-सुर्दू, काट-कूट, इत्यादि। अनुकरण-वाचक शब्द, जिनके कोई-कोई वैयाकरण पुनरुक्त शब्दों का ही भेद मानते हैं, किसी पदार्थ की यथार्थ अथवा कल्पित ध्वनि को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं; जैसे, खटखटाना, धडाम, चट, इत्यादि।