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हिदी-सचेत, सबेरा, मलग, सहेली, साढे (सं०-सार्द्ध), इत्यादि ।। सत्-अच्छा; जैसे, सज्जन, सत्कर्म, सत्पात्र, सद्गुरु ।

सह-साथ, जैसे, सहकारी, सहगमन, सहज, सहचर, सहानुभूति, सहोदर ।

स्व-अपना, निजी, उदा०--स्वतत्र, स्वदेश, स्वधर्म, स्वभाव, न्वभाषा, स्वराज्य, स्वरूप ।

स्वयं--खुद, अपने आप ; जैसे, स्वयं-भू, स्वयंवर, स्वयं-सिद्ध, स्वयं-सेवक ।

| सु०- कृ छै भू ( सस्कृत ) धातु के पूर्व कई शब्द–विशेषकर संज्ञाएँ और विशेषण-—ईकारांत अव्यय होकर आते है। जैसे, स्वीकार, वर्गीकरण, वशीकरण, द्रवीभूत, फलीभूत, भस्मीभूत, वशीभूत, समीकरण ।

| (ख) हिंदी उपसर्ग

ये उपसर्ग बहुधा लस्कृत उपसर्गों के अपभ्रंश हैं और विशेष- कर तद्भव शब्दों के पूर्व आते हैं।

अ = अभाव, निषेध; उदा०—अचेत, अजान, अथाह, अबेर, अलग ।

अपवाद----संस्कृत में स्वरादि शब्दों के पहले अ के स्थान में अन् हो जाता है, पर तु हिंदी में अन व्य जनादि शब्दों के पूर्व प्राप्त है; जैसे, अनगिनती, अनघेरा ( कु०), अनवन, अनभल (राम०), अनमेल, अनहित (राम०) ।

ल०-( १ ) अनूठा, अनेखा और अनैसा शद्ध सस्कृत के अपभ्रंश जान पड़ते है जिनमें अन् उपसर्ग आया है।

(२) कभी-कभी यह प्रत्यय भूल से लगा दिया जाता है जैसे अलोप, अचपल।