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है जो अनुमान से सन् १६०० से लेकर १८०० ई० तक रहा। इस काल मै केवल कविता और भाषा ही की उन्नति नहीं हुई बरन साहित्य-विषय के भी अनेक उत्तम और उपयोगी ग्रंथ लिखे गये । मध्य-हिंदी के कवियों में सब से प्रसिद्ध गुसाई तुलसीदास जी हुए, जिनका समय सन् १५७३ से १६२४ ई० तक है। उन्होंने हिंदी में एक महाकाव्य लिखकर भाषा का गौरव बढ़ाया और सर्व-साधारण में वैष्णव धर्म का प्रचार किया। राम के अनन्य भक्त होने पर भी गोसाई-जी ने शिव और राम में भेद नहीं माना और मतमतांतर का विवाद नहीं बढ़ाया । वैराग्य-वृत्ति के कारण उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति पर बहुत नहीं लिखा, तथापि, सुनते हैं, वृन्दावन मे जाकर और वहाँ एक मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति के दर्शन कर उन्होंने कहा-

"कहा कहाँ छवि आज की भले बने हौ नार्थ ।। तुलसी मस्तक जब नवे धनुष बान हो हाथ ।”

तुलसीदास ने ऐसे समय में रामायण की रचना की जब मुगल राज्य दृढ़ हो रहा था और हिंदू समाज के बंधन अनीति के कारण ढीले हो रहे थे। मनुष्य के मानसिक विकारों का जैसा अच्छा चित्र तुलसीदास ने खींचा है वैसा और कोई नहीं खींच सका ।।

रामायण की भाषा अवधी है, पर वह बैसवाड़ी से विशेष मिलती जुलती है। गोसाईजी के और ग्रंथों में अधिकांश ब्रज- भाषा है।

इस काल के दूसरे प्रसिद्ध कवि केशवदास, बिहारीलाल, भूषण, मतिराम और नाभादास हैं ।

केशवदास प्रथम कवि हैं जिन्होंने साहित्य विपयक ग्रंथ रचे । इस विषय के इनके ग्रंथ " कविप्रिया " " रसिक-प्रिया" और " रामालंकृत-मंजरी " हैं। " रामचंद्रिका” और “ विज्ञान-गीता”