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(क) 'ई' के योग से बने हुए संस्कृत-समास भी एक प्रकार के तत्पुरुष हैं, जैसे, वशीकरण, फलीभूत, स्पष्टीकरण, शुचीभाव।

समानाधिकरण तत्पुरुष अर्थात् कर्मधारय

४६२—जिस तत्पुरुष समास के विग्रह में दोनों पदों के साथ एक ही (कर्त्ता-कारक की) विभक्ति आती है उसे समानाधिकरण तत्पुरुष अथवा कर्मधारय कहते हैं। कर्मधारय समास दो प्रकार का है—

(१) जिस समास से विशेष्य-विशेषण भाव सूचित होता है उसे विशेषतावाचक कर्मधारय कहते हैं, और (२) जिससे उपमानोपमेय-भाव जाना जाता है उसे उपमावाचक कर्मधारय कहते हैं।

४६३—विशेषतावाचक कर्मधारय समास के नीचे लिखे सात भेद हो सकते हैं—

(१) विशेषण-पूर्वपद—जिसमें प्रथम पद विशेषण होता है।

संस्कृत-उदाहरण---महाजन, पूर्वकाल, पीतांबर, शुभागमन, नीलकमल, सद्गुण, पुर्णेन्दु, परमानंद।

हिंदी-उदाहरण—नीलगाय, कालीमिर्च, मझधार, तलघर, खड़ी-बोली, सुंदरलाल, पुच्छलतारा, भलामानस, कालापानी, छुट-भैया, साढ़ेतीन।

उर्दू-उदाहरण—खुशबू, बदबू, जवाँमर्द, नौरोज।

[सू॰—विशेषण पूर्ष-पद कर्मधारय-समास के संबंध में यह कह देना आवश्यक है कि हिंदी में इस समास के केवल चुने हुए उदाहरण मिलते हैं। इसका कारण यह है कि हिंदी में, संस्कृत के समान, विशेष्य के साथ विशेषणों में विभक्ति का योग नहीं होता—अर्थात् विशेषण विभक्ति त्यागकर विशेष्य में नहीं मिलता। इसलिए हिंदी में कर्म-धारय समास उन्हीं विशेषणों के साथ होता है जिनमें कुछ रूपांतर हो जाता है; अथवा जिनके कारण विशेष्य से किसी विशेष वस्तु का बोध होता है। जैसे, छुटभैया, कालीमिर्च, बड़ाघर।]