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(४) अवधारणोत्तरपद—जिस समास में दूसरे पद के अर्थ पर पहले पद का अर्थ अवलम्बित रहता है उसे अवधारणोत्तर पद कहते हैं; जैसे, साधु-समाज-प्रयाग (साधु-समाज-रूपी प्रयाग)। (राम॰)। इस उदाहरण में दूसरे शब्द 'प्रयाग' के अर्थ पर प्रथम शब्द साधु-समाज का अर्थ अवलंबित है।

[सू॰—कर्म-धारय समास में वे रंग-वाचक विशेषण भी आते हैं जिनके साथ अधिकता के अर्थ में उनका समानार्थी कोई विशेषण वा संज्ञा जोड़ी जाती है; जैसे, लाल-सुख, काला-भुजंग, फक-उजला। (अ॰ ३४४—ए)।]

द्वंद्व।

४६५—जिस समास में सब पद अथवा उनका समाहार प्रधान रहता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं। द्वंद्व समास तीन प्रकार का होता है—

(१) इतरेतर-द्वंद्व—जिस समास के सब पद "और" समुच्चय-बोधक से जुड़े हुए हों, पर इस समुच्चयबोधक का लोप हो, उसे इतरेतर द्वंद्व कहते हैं, जैसे, राधाकृष्ण, ऋषि-मुनि, कंद-मूल-फल।

हिंदी-उदा॰—
गाय-बैल बेटा-बेटी भाई-बहिन
सुख-दुःख घटी-बढ़ी नाक-कान
माँ-बाप दाल-भात दूध-रोटी
चिट्ठी-पाती तन-मन-धन इकतीस
तेंतालीस

(अ) इस समास में द्रव्यवाचक हिंदी समस्त संज्ञाएँ बहुधा एकवचन में आती हैं। यदि दोनों शब्द मिलकर प्रायः एक ही वस्तु सूचित करते हैं तो वे भी एकवचन में पाते हैं; जैसे,