रात हो जाते हैं, और उनका आद्य स्वर ह्रस्व हो जाता है, जैसे, छुटभैया, बड़गाँव, लमडोर, खटमिट्टा, अधपका।
अपवाद—भोलानाथ, भूरासल ।
[सू॰—"लाल" शब्द के साथ छोटा, गोरा, भूरा, नन्हा, बाँका आदि विशेषणों के अन्त्य आ के स्थान में ए होता है, जैसे, भूरेलाल, छोटेलाल, वांकेलाल, नन्हेलाल। "काला" के बदले कालू अथवा कल्लू होता है; जैसे, कालूराम, कल्लूसिंह।]
४७८—बहुब्रीहि-समास के प्रथम स्थान में आनेवाले आकारांत शब्द (संज्ञा और विशेषण) अकारांत हो जाते हैं और दूसरे शब्द के अंत मे बहुधा आ जोड़ दिया जाता है। यदि दोनों पदों के आद्य स्वर दीर्घ हों तो उन्हें बहुधा हस्व कर देते हैं, जैसे, दुधमुँहा, बड़पेटा, लमकना (चूहा), नकटा (नाक है कटी हुई जिनकी), कनफटा, टुटपुँजिया, मुँछमुडा।
अपवाद—लालकुर्ती, बड़भागी, बहुरंगी।
[ सू॰—बहुब्रीहि-समासो का प्रयोग बहुधा विशेषण के समान होता है। और आकारांत शब्द पुँल्लिग होते है। स्त्रीलिग में इन शब्दों के अंत में ई वा नी कर देते है, जैसे, दुधमुँही, नकटी, बढ़पेटी, टुटपुँजनी।]
४७९—बहुब्रीहि और दूसरे समासों में जो संख्यावाचक विशेषण आते हैं उनका रूप बहुधा बदल जाता है। ऐसे कुछ विकृत रूपों के उदाहरण ये हैं—
मूल शब्द | विकृत रूप | उदाहरण |
दो | दु | दुलडी, दुचित्ता, दुगुना, |
दुराज, दुपट्टा। | ||
तीन | ति, तिर | तिपाई, तिरसठ, |
तिबासी, तिखूँटी। | ||
चार | चौ | चौखूँटा, चौदह |
३०