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दूसरा अध्याय।

कारकों के अर्थ और प्रयोग।

५१०—संज्ञाओं (और सर्वनामों) का, दूसरे शब्दों के साथ, ठीक-ठीक संबंध जानने के लिए उनके कारकों के भिन्न-भिन्न अर्थ और प्रयोग जानना आवश्यक है।

(१) कर्त्ता-कारक।

५११—हिंदी मे कर्त्ता-कारक के दो रूप हैं-(१) अप्रत्यय (प्रधान), (२) सप्रत्यय (अप्रधान)।

अप्रत्यय कर्त्ता-कारक नीचे लिखे अर्थों में आता है—

(क) प्रातिपादिक के अर्थ में (किसी वस्तु के उल्लेख मात्र में); जैसे, पुण्य, पाप, लड़का, वेद, सत्संग, कागज।

[सू॰—शब्द-कोशों और लेखों के शीर्षकों में संज्ञाएँ इसी रूप में आती हैं। इस पुस्तक में अलग-अलग अक्षरों और शब्दों के जो उदाहरण दिए गए हैं वे सब इसी अर्थ में कर्त्ता-कारक हैं।]

(ख) उद्देश्य में—पानी गिरा, नौकर काम पर भेजा जायगा; हम तुम्हें बुलाते हैं।

(ग) उद्दश्य-पूर्ति में—घोड़ा एक जानवर है, मंत्री राजा हो गया; साधु चोर निकला, सिपाही सेनापति बनाया गया।

(घ) स्वतंत्र कर्त्ता के अर्थ में—इस भगवती की कृपा से सब चिंताएँ दूर होकर बुद्धि निर्मल हुई (शिव॰), रात बीतकर आस्मान के किनारों पर लाली दौड़ पाई थी (गुटका॰), इससे आहार पचकर उदर हलका हो जाता है (शकु॰), कोयला जल भई राख, नौ बजकर दस मिनट हुए हैं। हमारे मित्र, जो काशी में रहते हैं, उनके लड़के का विवाह है, मामला अदालत के सामने पेश होकर, कई प्रादमी इलजाम मे पकड़े गये (सर॰)।