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[सू॰—जिस संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के किसी शब्द से संबंध नहीं रहता, अथवा जो केवल पूर्वकालिक अथवा अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत से सबंध रखता है और कर्त्ता-कारक में आता है उसे स्वतंत्र कर्त्ता कहते हैं। हिंदी में इस स्वतंन्त्र कर्त्ता का प्रयोग अधिक नहीं होता। कभी-कभी क्रियार्थक संज्ञा के साथ भी स्वतंत्र कर्त्ता आता है, जैसे, मालवे पर गुजरातवालों का अधिकार होना सिद्ध है। (सर॰)।]

(ड) स्वतंत्र उद्देश्य-पूर्त्ति में—मंत्री का राजा होना सबको बुरा लगा, लडके का स्त्री बनना ठीक नहीं है।

५१२—कुछ कालवाचक संज्ञाएँ, बहुवचन के विकृत रूप में ही कर्त्ता-कारक में आती हैं; जैसे, मुझे परदेश में बरसों बीत गये, इस काम में महीनों लगते हैं।

५१३—नहाना, छींकना, खॉसना, आदि कुछ शरीर-व्यापार-सूचक क्रियाओं के भूतकालिक कृदंत से बने हुए कालों को छोड़ शेष अकर्मक क्रियाओं के और बकना, भूलना, आदि कई एक सकर्मक क्रियाओं के सब कालों मे अप्रत्यय कर्त्ता-कारक आता है। उदा॰—मैं जाता हूँ, लड़का आया, स्त्री सेती थी, वह कुछ नहीं बोला। (संयुक्त क्रियाओं के साथ इस कारक के प्रयोग के लिए ६३८ वाँ अंक देखो।)

५१४—सप्रत्यय कर्त्ताकारक वाक्य में केवल उद्देश्य ही के अर्थ में आता है; जैसे, लड़के ने चिट्ठी लिखी, मैंने नौकर को बुलाया, हमने अभी नहाया है।

५१५—बोलना, भूलना, बकना, लाना, समझना, जनना, आदि सकर्मक क्रियाओं को छोड़ शेष सकर्मक क्रियाओं के और नहाना, छींकना, खाँसना, आदि अकर्मक क्रियाओं के भूतकालिक कृदंत से बने हुए फाखों के साथ सप्रत्यय कर्त्ता-कारक आता है; जैसे, तुमने क्यों छींका, रानी ने ब्राह्मण को दक्षिणा दी, नौकर ने