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(२) कर्म और क्रिया का अन्वय।

५७६—सकर्मक क्रियाओं के भूतकालिक कृदत से बने हुए कालों के साथ जब सप्रत्यय कर्त्ता-कारक और अप्रत्यय कर्म-कारक आता है। तब कर्म के लिंग-वचन-पुरुष के अनुसार क्रिया के लिगादि होते हैं; (अं॰—५१८) जैसे, लड़के ने पुस्तक पढ़ी, हमने खेल देखा है, स्त्री ने चित्र बनाये थे, पंडितों ने यह लिखा होगी।

५७७—कर्म-कारक और क्रिया के अन्वय के अधिकांश नियम उद्देश्य और क्रिया के अन्वय ही के समान हैं, इसलिए हम उन्हे यहाँ संक्षेप में लिखकर उदाहरणों के द्वारा स्पष्ट करते हैं—

(अ) एक ही लिग और एकवचन की अनेक प्राणिवाचक संज्ञाएँ अप्रत्यय कर्म-कारक में आवे तो क्रिया उसी लिग के बहुवचन में आती है, जैसे, मैंने गाय और भैंस मोल ली, शिकारी ने भेड़िया और चीता देखे, महाजन ने वहाँ लडका और भतीजा भेजे , हमने नाती और पोता देखे।

[सू॰—अप्रत्यय कर्म-कारक में उत्तम और मध्यम पुरूष नहीं आते।]

(आ) यदि अनेक संज्ञाओं से पृथक्ता का बोध हो तो क्रिया एकवचन में आयगी, जैसे, मैंने एक घोडा और एक बैल बेचा; महाजन ने अपना लडका और भतीजा भेजा, किसान ने एक गाय और एक भैंस मोल ली; हमने नाती और पोता देखा।

(इ) यदि एक ही लिंग की एकवचन अप्राणिवाचक अथवा भाववाचक संज्ञाएँ कर्म हों तो क्रिया एकवचन में आयगी; जैसे, मैंने कुँएँ में से घड़ा और लोटा निकाला; उसने सुई और कंघी संदूक में रख दी, सिपाही ने युद्ध में साहस और धीरज दिखाया था।

(ई) यदि भिन्न-भिन्न लिगों की अनेक प्राणिवाचक संज्ञाएँ एकवचन में आवे तो क्रिया बहुधा पुल्लिग बहुवचन में आती है;

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