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(४) विशेषण बहुधा प्रत्ययात संज्ञा की भी विशेषता बतलाता है और इसके अनुसार उसका रूपांतर होता है, जैसे, बड़ी आमदनीवाला; चार घोड़ेवाली गाड़ी।

५८७—संबंध-कारक में आकारांत विशेषण के समान विकार होता है। संबंध-कारक को भेदक और उसके संबंधी शब्द को भेद्य कहते हैं (अ॰—३०६—४)। यदि भेद्य विकृत रूप में आवे तो भेदक में भी वैसा ही विकार होता है; जैसे, राजा के महल में; सिपाहिये के कपडे; लड़के की छडी।

५८८—यदि अनेक भेद्यों का एक ही भेदक हो तो यह प्रथम भेद्य से अन्वित होता है, जैसे, जाति के सर्वगुण-संपन्न बालक और बालिकाओं ही का विवाह होना देना चाहिये (सर॰); जिसमें शब्दों के भेद, अवस्था और व्युत्पत्ति का वर्णन हो।

५८९—यदि भेद्य से केवल वस्तु की जाति का अर्थ इष्ट हो (संख्या का नही), तो भेदक बहुवचन होने पर भी भेद्य एकवचन रहता है, जैसे, साधुओं का चित्त कोमत होता है, राजाओं की नीति विलक्षण होती है, महात्माओं के उपदेश से हम लोग अपना आचरण सुधार सकते हैं।

(अ) यद्यपि भेदक में उसका मूल लिग-वचन रहता है तथापि उसमे भेद्य का लिंग-वचन माना जाता है, जैसे, लडके ने कहा कि मेरी पुस्तकें खो गई। इस वाक्य मे 'मेरी' शब्द 'लडका' संज्ञा के अनुरोध से पुल्लिंग और एकवचन है, परंतु 'पुस्तके' संज्ञा के योग से उसे स्त्रीलिंग और बहुवचन कहेंगे।

५९०—यदि विधेय-विशेषण आकारांत हो तो विभक्ति-रहित कर्त्ता के साथ उसमें उद्देश्य-विशेषण के समान विकार होता है; जैसे, सोना पीला होता है, घास हरी हैं; लड़की छोटी दीखती है; बात उलटी हो गई; मेरी बात पूरी होना कठिन है।