अभी ठंढा हमको (हि॰ व्या॰); रहो बात को अपनी करते बड़ी तुम (तथा), जहाँ मुनि, ऋषि देवताओं को बैठे पाता था (प्रेम॰), इन्हें वन में अकेले मत छोडियो (तथा), आप इस लडकी को अच्छा (अच्छी) कर सकते हैं?
(आ) कर्तृवाच्य के भावेप्रयोग मे (अं॰—३६८—१) विधेय-विशेषण के संबंध से तीन प्रकार की रचना पाई जाती है, जैसे—
(१) तुमने मुझ दासी को जगल में अकेली छोड़ी (गुटका॰)।
(२) आपने मुझ अबला का अकेली जंगल में छोड़ा (गुटका॰)।
(३) (मैंने) इसको (लडकी को) इतना बड़ा बनाया (सर॰)।
इस विषय के अन्य उदाहरण
(१) तुमने मुझे वन में तजी अकेली (प्रेम॰)।
(२) रघु ने नन्दिनी को अपने सामने खड़ी देखा (रघु॰)।
(३) मैंने (इन्हें) कुछ सीधे कर लिये (शकु॰)।
(४) उसने सब गाड़ियो को खड़ा किया।
इन रचनाओं में विधेय-विशेषण और क्रिया का एकसा रूपातर कर्ण-मधुर जान पड़ता है, जैसे, रघु ने नदिनी को अपने सामने खड़ी देखी अथवा रघु ने नंदिनी को अपने सामने खड़ा देखा। अनमिल विकार के लिए सिद्धांत का कोई आधार नहीं है।
[सू॰—इस प्रकार के विशेषणों को कोई-कोई वैयाकरण क्रिया-विशेषण मानते है (अ॰—४२७—ई), क्योंकि इनसे कभी-कभी क्रिया की विशेषता सूचित होती है। जहाँ इनसे ऐसा अर्थ पाया जाता है, वहाँ इन्हें क्रिया-विशेषण मानना ठीक है, जैसे, पेडों को सीधे लगाओ।]