पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/५५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५३०)

प्रयोग किया जाता है; जैसे, सूर्य पूर्व मे उदय होता है। पक्षी अंडे देते हैं। सोना पीला होता है। आत्मा अमर है। "चिंता से सब आशा रोगी निज जीवन की खोता है" (सर॰)। हबशी काले होते हैं।

(ई) वर्त्तमान-काल की अपूर्णता, जैसे, पंडितजी स्नान करते हैं (कर रहे हैं)। मैं अभी लिखता हूँ।

(उ) अभ्यास—जैसे, हम बड़े तड़के उठते हैं। सिपाही रात को पहरा देता है। गाड़ी दोपहर को आती है। दुखित-दोष-गुन गनहि न साधू (राम॰)।

(ऊ) आसन्न-भूत—आपको राजा सभा मे बुलाते हैं। मैं अभी अयोध्या से आता हूँ (सत्य॰)। क्या हम तेरी जाति-पॉति पुछते हैं (शकु॰)?

(ऋ) आसन्न-भविष्यत्—मैं तुम्हें अभी देखता हूँ। अब तो वह मरता है। लो, गाड़ी अब आती है।

(ए) संकेत-वाचक वाक्यों में भी सामान्य-वर्त्तमान का प्रयोग होता है; जैसे, चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं। जो मैं उससे कुछ कहता हूँ तो वह अप्रसन्न हो जाता है।

(ऐ) बोलचाल की कविता में कभी-कभी संभाव्य-भविष्यत्के आगे होना क्रिया के योग से बने हुए सामान्य-वर्त्तमान काल का प्रयोग करते हैं; जैसे, कहाॅ जलै है वह आगी (एकांत॰)। यह रचना अब अप्रचलित हो रही है (अं॰—३८८, ३—आ)।

(७) अपूर्ण भूत-काल।

६०५—इस काल से नीचे लिखे अर्थ सूचित होते हैं—

(अ) भूतकाल की किसी क्रिया की अपूर्ण दशा—किसी जगह कथा होती थी। चिल्लाती थी वह रो-रोकर।