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लिखी है। दयानंद सरस्वती ने ऋग्वेद का अनुवाद किया है। भारतवर्ष में अनेक दानी राजा हो गये हैं।

(इ) बैठना, लेटना, सोना, पड़ना, उठना, थकना, मरना, आदि शरीर-व्यापार अथवा शरीरस्थिति-सूचक क्रियाओं के आसन्न- भूत-काल के रूप से बहुधा वर्त्तमान स्थिति का बोध होता है, जैसे, राजा बैठे हैं (बैठे हुए हैं), मरा घोड़ा खेत में पड़ा है (पड़ा हुआ हैं), लडका थका है।

[सू॰—यथार्थ में ऊपर लिखे वाक्यों के भूतकालिक कृदत स्वतंत्र विशेषण हैं और उनका प्रयोग विधेय के साथ हुआ है। ऐसी अवस्था में उन्हें क्रिया के साथ मिलाकर आसन्न भूतकाल मानना भूल है। इन क्रियाओं के आसन्न भूतकाल के शुद्ध उदाहरण में है—रजा अभी बैठे है (अर्थात् वे अब तक खड़े थे)। लडका अभी सोया है।]

(ई) भूतकालिक क्रिया की आवृत्ति सूचित करने में बहुधा आसन्न भूतकाल होता है, जैसे, जब-जब अनावृष्टि हुई है, तब-तब अकाल पड़ा है। जब-जब वह मुझे मिला है, तब-तब उसने धोखा दिया है।

(उ) किसी क्रिया का अभ्यास—जैसे, उसने बढ़ई का काम किया है। अपने कई पुस्तकें लिखी हैं।

( १३) पूर्ण भूतकाल।

६११—इस काल का प्रयोग नीचे लिखे अर्थों में होता है—

(अ) बोलने वा लिखने के बहुत ही पहिले की क्रिया, जैसे, सिकदर ने हिंदुस्तान पर चढ़ाई की थी। लड़कपन में हमने अँगरेजी सीखी थी। सं॰ १९५६ में इस देश मे अकाल पड़ा था। आज सबेरे मैं आपके यहाँ गया था।

[सू॰—भूतकाल की निकटता वा दूरता अपेक्षा और आशय से जानी जाती है। वक्ता की दृष्टि से एक ही समय कभी-कभी निकट ओर कभी-कभी दूर प्रतीत होता है। आठ बजे सबेरे आनेवाले किसी आदमी से, दिन के