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हुआ आता है। सिपाही ने कई चोर भागते हुए देखे। दूसरा घोडा जीता हुआ लौट आया। स्त्रियाॅ गीत गाती हुई गई। सड़क पर एक आदमी आता हुआ दिखाई देता है। मैं लड़के को दौड़ाता लाऊँगा।

(आ) जाते समय, लौटते वक्त, मरती बेरा, जीते जी, फिरती बार, आदि उदाहरणों में वर्त्तमान-कालिक कृदंत का प्रयोग विशेषण के समान हुआ है। आकार के स्थान मेँ ए होने का कारण यह है कि उस विशेषण के विशेष्य से विभक्ति का संस्कार है। इन उदाहरणों में समय, वक्त, बेरा, जी इत्यादि संज्ञाएँ यथार्थ विशेष्य नहीं हैं, किंतु केवल एक प्रकार की लक्षण*[१] से विशेष्य मानी जा सकती हैं। जाते=जाने के, लौटते=लौटने के। इस विचार से यहाँ जाते, लौटते, आदि संबंध-कारक हैं और संबंध-कारक विशेषण का एक रूपांतर ही है।

(इ) कभी-कभी वर्त्तमानकालिक कृदंत विशेषण विशेष्य-निघ्र होने पर भी क्रिया की विशेषता बतलाता है; जैसे, हिरन चौकडी भरता हुआ भागा। हाथी झूमता हुआ चलता है। लड़की अटकती हुई बोलती है। इस अर्थ में वर्त्तमानकालिक कृदंत की द्विरुक्ति भी होती है; जैसे, यात्री अनेक देशों में घूमता-घूमता लौटा। स्त्रियाँ रसाई करती-करती थक गईं।

(२) भूतकालिक कृदंत।

६२२—अकर्मक क्रिया से बना हुआ भूतकालिक कृदंत कर्तृवाचक और सकर्मक क्रिया से बना हुआ कर्मवाचक होता है और दोनों का प्रयोग विशेषण के समान होता है; जैसे, मरा हुआ घोडा


  1. * लक्षणा शब्द की वह वृत्ति (शक्ति) है जिससे उसके किसी अर्थ से मिलता-जुलता अर्थ सूचित होता है, जैसे, उसका हृदय पत्थर है।