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खेत में पडा है; एक आदमी जली हुई लकडियाँ बटोरता था, दूर से आया हुआ मुसाफिर।

(अ) यह कृदंत विधेय-विशेषण होकर भी आता हैं, जैसे, वह मन में फूला नहीं समाता। वहाँ एक पलँग बिछा हुआ था। आप तो मुझसे भी गये बीते हैं। इसका सबसे ऊँचा भाग सदा बर्फ से ढँका रहता है। लड़के ने एक पेड़ में कुछ फल लगे हुए देखे। चोर घबराया हुआ भागा।

(आ) कभी-कभी सकर्मक भूतकालिक कृदत का उपयोग कर्तृवाचक होता है और तब उसका विशेष्य उसका कर्म नही, किंतु कर्त्ता अथवा दूसरा शब्द होता है। कर्म विशेषण के पूर्व आकर विशेषण का अर्थ पूर्ण करता है, जैसे, काम सीखा हुआ नकर; इनाम पाया हुआ लडका, पर कटा हुआ गिद्ध, (नीचे) नाम दी हुई पुस्तकें।

[सू॰—किसी-किसी की सम्मति में ये उदाहरण सामासिक शब्दों के हैं और इन्हें मिलाकर लिखना चाहिए, जैसे इनाम-पाया हुआ; नाम-दी हुई।]

(इ) भूतकालिक कृदंत का प्रयोग बहुधा सज्ञा के समान भी होता है और उसके साथ कभी-कभी "बिना" का योग होता है, जैसे, किये का फल। जले पर लोन। मरे को मारना। बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछताय। लडके इसको बिना छेड़े न छोड़ते।

(ई) भूतकालिक कृदंत बहुधा अपनी सवधी संज्ञा के संबंध कारक के साथ आता है, जैसे, मेरी लिखी पुस्तकें, कपास का बना कपड़ा, घर का सिला कुरता (अं॰—५४०)।

(३) कर्तृवाचक कृदंत।

६२३—इस कृदंत का उपयोग सज्ञा अथवा विशेषण के समान होता है और पिछले प्रयोग में इससे कभी-कभी आसन्न-भविष्यत् का