पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/५६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५४७)

राजा को प्रणाम किया। ये वाक्य यद्यपि दुअर्थी जान पड़ते हैं, तो भी इनमें कृदंतों का संबंध कर्त्ता से है।

(उ) पुर्ण क्रियाद्योतक कृदंत का कर्त्ता, अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के कर्त्ता के समान, अर्थ के अनुसार अलग-अलग कारकों में आता है, जैसे, इनके मरे न रोइये; मुझे घर छोड़े एक युग बीत गया। दस बजे गाडी आई।

(ऊ) कभी-कभी इस कृदंत का प्रयोग 'बिना' के साथ होता है, जैसे, बिना आपके आये हुए यह काम न होगा।

(ऋ) अपूर्ण और पुर्ण क्रियाद्योतक कृदंत बहुधा कर्मवाच्य में नहीं आते। यदि आवश्यकता हो तो कर्मवाच्य का अर्थ कर्तृवाच्य ही से लिया जाता है, जैसे, वह बुलाये (बुलाये गये) बिना यहाॅ न आयगी। गाते-गाते (गाये जाते-जाते) चुके नहीं वह। (एकात॰)

(६) तात्कालिक कृदंत ।

६२६—इस कृदंत से मुख्य क्रिया के समय के साथ ही होने वाली घटना का बोध होता है; और यह अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के अंत 'में' ही जोड़ने से बनता है, जैसे, बाप के भरतेही लड़कों ने बुरी आदतें सीखीं; सूरज निकलतेही वे लोग भागे, इतना सुनतेही वह आग-बबूला हो गया, लड़का मुझे देखतेही छिप जाता है।

(अ) इस कृदंत की पुनरुक्ति भी होती है और उससे काल की अवस्थिति का बोध होता है, जैसे, वह मूर्त्ति देखतेही-देखते लोप हो गई; आपके लिखतेही-लिखते कई घटे लग जाते हैं।

(आ) इस कृदंत का कर्त्ता, अर्थ के अनुसार, कभी-कभी मुख्य क्रिया का कर्त्ता और कभी-कभी स्वतंत्र होता है; जैसे, उसने आतेही उपद्रव मचाया; उसके आतेही उपद्रव मच गया।