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(७) पूर्वकालिक कृदंत।

६२७—पूर्वकालिक कृदंत बहुधा मुख्य क्रिया के उद्देश्य से संबंध रखता है जो कर्त्ता-कारक में आता है; जैसे, मुझे देखकर वह चला गया; काशी से कोई बड़े पंडित यहाँ आकर ठहरे हैं; देव ने उस मनुष्य की सचाई पर प्रसन्न होकर वे तीनों कुल्हाड़ियाँ उसे दे दी।

(अ) कभी-कभी पूर्वकालिक कृदंत कर्त्ता-कारक को छोड़ अन्य कारकों से संबंध रखता है; जैसे, आगे चलकर उन्हें एक अदमी मिला, भाई को देखकर उसका मन शांत हुआ है।

(आ) यदि मुख्य क्रिया कर्मवाच्य हो तो पूर्वकालिक कृदंत भी कर्मवाच्य होना चाहिये; पर व्यवहार में उसे कर्तृवाच्य ही रखते हैं; जैसे, धरती खोदकर एकसी कर दी गई (खोदकर=खोदी जाकर), उसका भाई मन्सूर पकड़कर अकबर के दरवार में लाया गया (सर॰); (पकड़कर=पकड़ा जाकर)।

[सू॰—"कविता-कलाप" में पूर्वकालिक क्रिया के कर्मवाच्य का यह उदाहरण आया है—

फिर निज परिचय पूछे जाकर,
बोले यम यों उससे सादर।

इस वाक्य में 'पूछे जाकर' क्रिया का प्रयोग एक विशेष अर्थ (पूछना=परवाह करना) में व्याकरण से शुद्ध माना जा सकता है, पर उसके साथ 'परिचय' कर्म का प्रयोग अशुद्ध है, क्योकि "परिचय पूछे जाकर" न संयुक्त क्रिया ही है और न समास है। इसके सिवा वह कर्मवाच्य की रचना के विरूद्ध भी है। (अ॰—३५६)]

(इ) कभी-कभी पूर्वकालिक कृदंत के साथ स्वतंत्र कर्त्ता आता है जिसका मुख्य क्रिया से कोई संबंध नहीं रहता; जैसे, चार बजकर दस मिनट हुए; खर्च जाकर पाँच रुपये फी बचत होगी; आज अर्जी पेश होकर यह हुकुम हुआ। इस राग से परिश्रमी