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अकार, ककार, मकार, सकार से अ, क, म, स का बोध होता है। 'रकार’ को कोई कोई 'रेफ' भी कहते हैं।

१८-जंब दो वा अधिक व्यंजनों के बीच में स्वर नहीं रहता तब उनको संयोगी वा संयुक्त व्यंजन कहते हैं; जैसे, क्य, स्म, त्र। संयुक्त व्यंजन बहुधा मिलाकर लिखे जाते हैं। हिंदी में प्रायः तीन से अधिक व्यंजनों का संयोग नहीं होता , जैसे, स्तम्भ, मत्स्य, माहात्म्य ।।

१६-जब किसी व्यंजन का संयोग उसी व्यंजन के साथ होता है, तब वह संयोग द्वित्व कहलाता है। जैसे, अन्न, सत्ता ।

२८-संयोग में जिस क्रम से व्यंजनों का उच्चारण होता है, उसी क्रम से वे लिखे जाते हैं, जैसे, अन्त, यत्न, अशक्त, सत्कार।

२१-क्ष, त्र, ज्ञ, जिन व्यंजनों के मेल से बने हैं, उनका कुछ भी रूप संयोग मैं नहीं दिखाई देता; इसलिए कोई कोई उन्हें व्यंजनों के साथ वर्णमाला के अंत में लिख देते हैं। क् और ष के मेल से क्ष,त् और र के मेल से त्र और जू और ब के मेल से ज्ञ बनता है।

२२–पाई (।)-वाले आद्य वर्गों की पाई संयोग में गिर जाती है, जैसे, प् + य= प्य, त् + थ= त्थ, त् + म् + य=त्म्य ।

२३----ड, छ, ट, ठ, ड, ढ, ह, ये सात व्यंजन संयोग के आदि में भी पूरे लिखे जाते हैं और इनके अंत का (संयुक्त) व्यंजन पूर्व वर्ण के नीचे बिना सिरे के लिखा जाता है, जैसे, अङ्कुर, उच्छास, टट्टी,गट्टा, हड्डी, प्रह्लाद, सह्याद्रि ।

२४–कई संयुक्त अक्षर दो प्रकार से लिखे जाते हैं, जैसे, क् + क= छ, क्क; व्+व=व्व, ल् + ल = ल्ल, क् + ल्=कु कल्: श्+ व=श्वव, श्व ।

२५–यदि रकार के पीछे कोई व्यंजन हो तो रकार उस

व्यंजन के ऊपर यह रूप ( ) घारण कॅरता हैं जिसे रेफ कहते हैं;