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तीसरा भाग।

वाक्य-विन्यास।

दूसरा परिच्छेद।

वाक्य-पृथक्करण।

पहला अध्याय।

विषयारंभ।

६७६―वाक्य-पृथक्करण के द्वारा शब्दों , तथा वाक्यों का परस्पर संबंध जाना जाता है और वाक्यार्थ के स्पष्टीकरण में सहायता मिलती है।

[टी०―यद्यपि इस प्रक्रिया के सूक्ष्म तत्त्व संस्कृत भाषा में पाये जाते हैं और वहाँ से हिंदी के कुछ व्याकरण में लिये गये है, तथापि इसके विस्तृत विवेचन की उत्पत्ति अँगरेजी भाषा के व्याकरण से है, जिसमें यह विषय न्यायशास्त्र से लिया गया है और व्याकरण के साथ इसकी संगति मिलाई गई है।]

(क) वाक्य के साथ, रूप की दृष्टि से, जैसा व्याकरण की निकट संबंध है वैसा ही, अर्थ के विचार से, न्याय-शास्त्र का भी घना संबंध है। व्याकरण का मुख्य विषय वाक्य है, पर न्यायशास्त्र का मुख्य विषय वाक्य नहीं, किंतु अनुमान है, जिसके पूर्व उपमें, अर्थ की दृष्टि से, पद और वाक्यों का विचार किया जाता है। न्यायशास्त्र के अनुसार प्रत्येक वाक्य में तीन बातें होनी चाहियें―


कोई-कोई इसे वाक्य-विश्लेषण कहते हैं।