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(उ) पौनःपुन्य―उसने बार-बार यह कहा। बढ़ई संदूक बना-बनाकर बेचता है। वे रात-रात-भर जागते हैं। पंडितजी कथा कहते समय बीच-बीच में चुटकुले सुनाते हैं। सिपाही बाड़ पर बाड़ छोड़ते हुए आगे बढ़े। काम करते-करते अनुभव हो जाता है।

(२) स्थानवाचक―

(अ) स्थिति―पंजाब में हाथियों का वन नहीं है। उसके एक लड़का है। हिंदुस्थान के उत्तर में हिमालय पर्वत है। प्रयाग गंगा के किनारे बसा है।

(इ) गति―(१) आरंभ-स्थान―ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए। गंगा हिमालय से निकलती है। वह घोड़े पर से गिर पड़ा।

(२) लय-स्थान―गाड़ी बंबई को गई। अँगरेजों ने कर्म-नाशा तक उसका पीछा किया। घोड़ा जंगल की तरफ भागा। आगे चले बहुरि रघुराई।

(३) रीतिवाचक―

(अ) शुद्ध रीति―मोटी लकड़ी बड़ा बोझ अच्छी तरह सम्हालती है। लड़का मन से पढ़ता है। घोड़ा लँगड़ाता हुआ भागा। सारी रात तलफते बीती।

(इ) साधन (अथवा कर्त्तृत्व)―मंत्री के द्वारा राजा से भेंट हुईं। सिपाही ने तलवार से चीते को मारा। यह ताला किसी दूसरी कुंजी से नहीं खुलता। देवता राक्षसों से सताये गये। इस कलस से लिखते नही बनता।

(उ) साहित्य―मेरा भाई एक कपड़े से गया। राजा बड़ी सेना लेकर चढ़ आया। मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। बिना पानी के कोई जीवधारी नहीं जी सकता।