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तथापि उसमे भी कवि लोग बहुत कुछ स्वतंत्रता से काम लेते हैं। खडीबेली की काव्य-स्वतंत्रता में नीचे लिखे विषय पाये जाते हैं―
(क) शब्द-दोष।
- १६―कहीं-कहीं प्राचीन शब्दों का प्रयोग―
- नेक न जीवन-काल बिताना (सर०)।
- पल-भर में तज के ममता सव (हिं० प्र०)।
- सुध्वनित पिक लौं जो वाटिका था बनाता (प्रिय०)।
- २०―कठिन सस्कृत शब्दों का अधिक उपयोग―
- भाता है जो स्वयमपि वही रूप हेाता वरिष्ठ (सर०)।
- स्वकुल-जलज का है जो समुत्फुल्लकारी (प्रिय०)।
- २१―संस्कृत शब्दों का अपभ्रंश―
- मार्ग = मारग (सर०)।
- हरिश्चद्र = हरिचंद्र (क० क०)।
- यद्यपि = यदपि (हिं० प्र०)।
- परमार्थ = परमारथ (सर०)।
- २२―नाम-धातुओं का प्रयोग―
- न तो भी मुझे लोग सस्मानते हैं (सर०)।
- देख युवा का भी मन लोभा (क० क०)।
- २३―लंबे समास―
- दुख-जलनिधि-डूबी का सहारा कहाँ है (प्रिय०)।
- अगणित-कमल-असल-जल-पूरित (क० क०)।
- शैलेंद्र-तीर-सरिता जल (सर०)।
- २४―फारसी-अरबी शब्दों का अनमिल प्रयोग―
- अफसोस! अब तक भी बने हैं पाव जो संताप के
―(सर०)।