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चाल पड़ी है ) इनके विषय में वैयाकरण एक-मत नहीं हैं। इन लोगों में किसी ने दो, किसी ने चार, किसी ने आठ और किसी किसी ने नौ तक भेद माने हैं। इस मत-भेद का कारण यह है कि ये वर्गीकरण पूर्णतया शास्त्रीय आधार पर नहीं किये गये । कुछ विद्वानों ने इन शब्द-भेदों को न्याय-सम्मत आधार देने की चेष्टा की है, जिसका एक उदाहरण नीचे दिया जाता है---

( १ ) भावनात्मक शब्द'

( १ ) वाक्य में उद्देश होनेवाले शब्द .....संज्ञा ।

( २ ) विधेय होनेवाले शब्द .......... क्रिया ।

( ३ ) संज्ञा का धर्म बतानेवाले शब्द ....विशेषण ।

( ४ ) क्रिया का धर्म बंतानेवाले शब्द क्रिया-विशेषण ।

(२) संबंधात्मक शब्दं

(५) संज्ञा का संबधं वाक्य से

बतानेवाले शब्द........,संबंध-सूचक

( ६ ) वाक्य का संबंध वाक्य से बतानेवाले शब्द..... समुच्चय-बोधक ।

(७) अप्रधान ( परंतु उपयोगी ) शब्द-भेद... ....... ...सर्वनाम ।

(८) अव्याकरणी उद्गार ........ विस्मयादि-बोधक ।

शब्दों के जो आठ भेद अँगरेजी भाषा के वैयाकरणों ने किये हैं वे निरे अनुमान-मूलक नहीं हैं। भाषा में उन अर्थों के शब्दों की आवश्यकता होती हैं और प्रायः प्रत्येक उन्नत भाषा में आपही आप उनकी उत्पत्ति होती है। भाषा-शास्त्रियों में यह सिद्धांत सर्वसम्मत है कि किसी भी भाषा में शब्दों के आठ भेद होते ही हैं । यद्यपि इन भेदों में न्याय-सम्मत वर्गीकरण के नियमों का पूरा पालन नहीं हो सकता और इनके लक्षण पूर्णतया निदोंंष नहीं हो सकते,तथापि व्याकरण के ज्ञान के लिए इन्हें जानने की आवश्यकता होती है। व्याकरण के द्वारा विदेशी भाषा सीखने में इन भेदों के ज्ञान से बड़ी सहायता मिलती है। वर्गीकरण का उद्देश यही है कि किसी भी विषय की बातें जानने में स्मरण-शक्ति को सहायता मिले। इसीलिए विशेष धर्मों के आधार पर पदार्थों के वर्ग किये जाते हैं।

किसी किसी का मत है कि हिंदी में अंगरेजी व्याकरण की छत न घुमनी चाहिये । ऐसे लोगों को सोचना चाहिये किं जिस प्रकार हिंदी से संस्कृत