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कोई हमारी बात न समझेगा। 'प्रयाग’ और ‘इलाहाबाद' में केवल नाम का अंतर है, परंतु 'शहर' और 'नदी' शब्दों में अर्थ का अंतर है। ‘प्रयाग' शब्द से उसके वाच्य पदार्थ का कोई भी धर्म सूचित नही होता; परंतु 'शहर' शब्द से हमारे मन में बड़े बड़े घरों के समूह की भावना उत्पन्न होती है। इसी प्रकार ‘सभा' शब्द सुनने से हमें उसका अर्थ-ज्ञान ( मनुष्यों के समूह का बोध ) सहज ही हो जाता है; परंतु ‘हितकारिणी' कहने से वैसा कोई धर्म प्रकट नहीं होता।

[ सूचना-यद्यपि पहचान के सुभीते के लिए मनुष्यों और स्थानों को विशेष नाम देना आवश्यक है, तथापि इस बात की आवश्यकता नहीं है कि प्रत्येक प्राणी या पदार्थ को कोई विशेष नाम दिया जाय । स्याही से लिखने के काम में आनेवाले प्रत्येक पदार्थ को हम 'कलम' शब्द से सूचित कर सकते हैं; इसलिए 'कलम' नाम के प्रत्येक अकेले पदार्थ को अलग अलग नाम देने की आवश्यकता नहीं है । यदि प्रत्येक अकेले पदार्थ ( जैसे, प्रत्येक सुई ) का एक अलग विशेष नाम रक्खा जाय तो भाषा बहुत ही जटिल हो जायगी । इसलिए अधिकांश पदार्थों को बोध जातिवाचक संज्ञाओं से हो जाता है और व्यक्तिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग केवल भूल या गड़बड़ मिटाने के विचार से किया जाता है । ]

१०३—जिस संज्ञा से पदार्थ में पाये जानेवाले किसी धर्म का बोध होता है उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे लंबाई, चतुराई,बुढ़ापा, नम्रता, मिठास, समझ, चाल, इत्यादि।

प्रत्येक पदार्थ में कोई न कोई धर्म होता ही है। पानी में शीतलता, आग में उप्णता, सोने में भारीपन, मनुष्य में विवेक और पशु में अविवेक रहता है। जब हम कहते हैं कि अमुक पदार्थ पानी है तब हमारे मन में उसके एक वा अधिक धर्मों की भावना रहती है और इन्हीं धर्मों की भावना से हम उस पदार्थ को पानी के बदले कोई दूसरा पदार्थ नहीं समझते । पदार्थ मानो कुछ विशेष धर्मों के मेल से बनी हुई एक मूर्ति है। प्रत्येक मनुष्य को प्रत्येक पदार्थ