पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१११

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खोशा ११६७ खोशा-संज्ञा पुं० [फा० लोशह,] १. गेहू' या जो की बाल । खौरना-क्रि० स० हिं० खौर+ना (प्रत्य॰)] १. खोर लगाना। . २.गुच्छा । मंजरी । गुच्छ [को॰] । तिलक करना । चंदन का टीका लगाना। २.उलट पलट यौ०-खोशाची%3D (१) खेत में गिरे दाने बीननेवाला । छवत्ति। देना। एक में मिला देना । बेतरतीब करना । . . सिला बीनतेवाला । (२) लाभ उठानेवाला । खोशाचीनी- खोरहा-वि० [हिं० खौरा+हा (प्रत्य॰)] [वी' खोरही] .. (१) सिला चुनना । उंछवृत्ति । (२) लाभ । प्राप्ति । १. जिसके सिर के बाल झड़ गए हों २, जिसे खौरा रोग ." खोशीदा-वि० [फा० खोशीदह ] सूखा । सुखाया हुआ [को०। हुप्रा हो (पशु)। जिसके शरीर में खुजली का रोग हो - खोसना-कि० स० [देश॰] छोनना । झटकना। खोह-संक्षा हो[सं० गोह?] १. गुहा । गुफा। कदरा । २. खोरा'-im पुं० [सं० क्षीर, फा० बालटोरह ] [वि० खोरहा] पहाड़ के बीच का गहरा गड्ढा । ३. दो पहाड़ों के बीच की एक प्रकार की पुरी नुजली जिसमें चमड़ा बिलयुल रूखा हो तंग जगह। . जाता है और बाल प्रायः झड़ जाते हैं । यह रोग फुखों और . __खोही-संज्ञा स्त्री० [सं० खोलक] १. पत्तों को छत्तरी । 30-- विल्लियों आदि को भी होता है। सिरनि जटा मुकुट सुमन मजुल युत तैसिय लसति नव पल्लव खौरा--वि०जिसे खौरा रोग हमा हो। .. . खोही ।-तुलसी (शब्द०) २.घोधी । सुडुमा । खेह । धूल। खोरि-संशा स्त्री० [हिं०] ३० 'खोर' । उ०-कंठ मनि माल . ___ खौ-संक्षा ली० [सं० खन्] १. खात । गड्ढा । २. अन्न संचित कलेश्वर चंदन खोरि सुहाई।- तुलसी ग्र०, पृ० २६५ । करने का गहरा गड्ढा । इसका मुंह ऊपर कुएं का सा होता है। खोरो-संश यो० [हिं० खोपड़ी] १. सोपड़ी] २. @ दे : ख@:--संशा पुं० [सं० स्कन्ध, प्रा० खघ] वृक्ष में वह स्थान जहाँ 'खोरि'। डाल से टहनी या टहनी से पत्ती निकलती है। खोरी-संज्ञा स्त्री० देश०] राय--(सोनारों की बोली)। । खौंचा-संज्ञा पुं० [फा० पट+च?] साढ़े छह का पहाड़ा । जैसे, मुहा०-खोरी फरना-राख में मिला देना । राख के रूप में ढौंचा, पाँचा, खींचा इत्यादि। कर देना। खौंचा-संज्ञा पुं० [फा० स्वान्चा] एक प्रकार का संदूक या याली खीरी -वि० [हिं० खोरि] दोपयुफ्त । दुष्ट । पोड़क। . . जिसमें मिठाई आदि खाने पीने की वस्तुएं रखी जाती हैं। खीर--संज्ञा पुं॰ [देश॰] बैल या सौड़ की डकार या बोली। खोट --संशा सी० [हिं० खोटना] १.खौंटने की क्रिया या भाव। खौलना-कि० अ० [सं० श्वेलन] (किसी तरल पदार्थ का) २. खाटने या नोचने के कारण (शरीर आदि पर) पड़ा उबलना । अत्यत गरम होना । जोश खाना । । हुमा चिह्न । खरोट । उ०—तिय निय हिय जु लगी चलत महा.-मिजाज या दिमाग खोलना=बहुत अधिक शोध या .. पिय नखरेख खरौंट । सूखन देति स सरसई खोंटि खोंटि आवेश पाना । खय सौंट । —बिहारी (शब्द०)। संयो०--कि० जाना। खोड़ा-संज्ञा पुं० [खन् या खात अथवा देश०] १. अनाज रखन । खोलाना--फ्रि० स० [हिं० खोलना] गरम करना । उबालना , का गड्ढा । खौं । २. गड़हा । गरी । खोहड़ी-वि० [हिं०] दे० 'खौहा'। खौंदना-क्रि० स० [हिं० खूदना] नष्टभ्रष्ट करना । एकदम बेकार खोहा-वि० [हिं० खानाखाउ+हा (प्रत्य०)1१. बहुत अधिक .: कर देना । खूदना । उ० हय हिहिनात भागे जात, . खानेवाला । जिसकी खुराक बहुत ज्यादा हो । २. जिसको ... घहरात गज, भारी भोर ठेलि पेलि रौंदि खाँदि डारहीं। खाने का लालच बहुत अधिक हो। ३. जो दूसरे की कमाई --तुलसी पं०, पृ० १७४ । पर अपना जीवन व्यतीत करे। दूसरे की कमाईखानेवाला । .. खौफ--संज्ञा पुं० [अ० खौफ] [वि० खौफनाक] डर । भय। ख्यात'-वि० [सं०] १. प्रसिद्ध । विदित । मसहूर । २. कथित । .. ख्यात-१० [ . भीति । दहशत । कहा हुमा परिणत । क्रि० प्र०—करना ।—लगना | होना। ख्यातां@--सधा पुं० [सं० ख्याति] वर्णन। कथन । कथा। खोफनाक-वि० [फा० खौफनाक] डरावना । भयानक । भीतिप्रद। स्थान । जैसे,---मुहणोत नेगसी से ख्यात । ' दहशत उत्पन्न करनेवाला । ख्याति--सात सौ [सं०] १. प्रसिद्धि । शोहरत । नामावरी । २. . खोर-संक्षा स्त्री० [सं० क्षौर या क्ष र से हिं०] १.मस्तक पर लगे हुए नाम । शीपंक । भभिधान (को०) । ३. वरांन । कथन (को०)। चदन का ग्राड़ा या धनुषाकार तिलक । चंदन का पाड़ा ४. प्रशंसा । प्रशस्ति (को०)। ५. दर्शन मे उपयुक्त पद द्वारा - टीका । त्रिपुड । . वस्तुओं की विवेचन को शक्ति । ज्ञान (को०)। विशेष-चंदन का मस्तक पर लेप करके उसपर उगली से क्रि० प्र०--फैलाना । —होना । खरोंच कर चिह्न बनाते हैं ! ख्यापक-वि० [सं०] ख्यापन करनेवाला । व्यक्त करनेवाला (को०] । कि० प्र०-देना। लगाना. . यापन--संशा पुं० [सं०] १. विज्यात करना । प्रसिद्ध करना । २. . २. स्त्रियों का एक गहना जो मस्तक पर पहना जाता है।.३. व्यक्त करना । खोजना । उद्घाटित करना । ३.अपराध सपली फंसाने का एक प्रकार का ज्ञान । स्वीकार करवा । ४.घोषणा करना [को० । .. .