पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१५४

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गभीर १२३१ ... गमनना : का संकट, अपशकुन । संकट । विपत्ति । उ-सबद्ध सियाँन विशेप- इसके सात भेद हैं-कंपित, स्फुरित, लौन, भिन्न, मसेन कपोत । सनमुख साहि दिव्यौ दल दोत । भयो दिसि स्थविर, पाहत और प्रांदोलित । पर साधारणतः लोग गाने में- . बानिय कम्ग करार । रुक्यो दिवि धोमय धूम गभार ।-पृ० स्वर के कपाने को ही गमक कहते हैं। रा०,६६६। गभीर-वि० [सं०] दे० 'गंभीर'। २. तबले की गंभीर आवाज । गभीरा-वि० स्त्री० [सं० गभीर] दे० 'गंभीर'। उ०-गई शयनालय में गमकर-संक्षा श्री० [सं० गमक-जाने या फैलनेवाला] महक । सुगंध।। तत्काल; गभीरा सरिता सी थी चाल ।-साकेत, पृ. ३२ । जैसे,- इस फूल की गमक चारो ओर फैल रही है। गभीरिका-संशा जी [सं०] गंभीर ध्वनि देनेवाला बड़ा ढोल फिो० गमकना-क्रि० अ० [हिं० गमक+ना (प्रत्य॰)] १. सुगंध .... गभुयार -वि० [सं० गर्भ, पा० गम+पार (प्रत्य॰)] देना । महकना । २. गूज पैदा होना। ३. खुशी या उत्साहः । [वि॰ स्त्री० गभुपारी ] १. गर्भ का (वाल )। जन्म के समय से भरना। का रखा हुआ (वाल)। उ०-(क) गभुयारी अलकावली गमकीला-वि० [हिं० गमक+ईला (प्रत्य॰)] गमकने या महकने- . लसें लटकन ललित ललाट । जनु उड़गन विधु मिलन को चले वाला । सुगंधित । तम विदारि करि बाट ।--तुलसी (शब्द०)। (ख) गभयारे गमक ग्रा- वि० [हिं० गम्फ] दे० 'गमकीला'। सिर केश है ते बघू सँवारे । लटकन लटकै भाल पर विधु मधि गमखार-वि० [फा० गमस्वार] १. गमवोर । २. हमदर्द । उ०-. गत तारे ।--सूर (शब्द०)। २. जिसके सिर के जन्म के कोई दिलबर यार नहीं गमखार किसे ठहराऊ !-प्रेमधन, वाल न फटे हों। जिसका मुंडन न हुआ हो। ३. नादान । भा० १, पृ० १६० । बहुत छोटा । अनजान । उ०-यमर सरिस सुंदर सुछवि ता गमखोर वि० [फा० गमएवार या गमखोर ] [ संशा गमखोरी] पर अति गभुमार । नहिं जानत रणविधि कधू नहिं देहीं निज सहिष्ण । सहनशील । वार ।-रघुराज (शब्द०)। गमखोरी-- संभा सी० [फा० यमस्वारी] सहिष्णता। सहनशीलता गभुवार -वि० [हिं० गभुमार ] दे० 'गार'।। मरस्वार-वि० [फा० गमण्यार] [संजा गमस्वारी] १. सहिए। गम-सच पुं० [सं०] १. राह । मार्ग । रास्ता। २. गमन । प्रयाए। सहनशील । २. दुःख या कष्ट में हाथ बढ़ानेवाला । हमदर्द। . ३. मथुन । सहवास । ४. सड़क । पथ (को०)। ५. शन पर गमगी- वि० [फा० गमगीन] [संध' गमगीनी] दुःखी । उदास । . अभियान । कूच (को०)। ६. अविचारिता। विचारशन्यता खिन्न । व्यक्ति । (को०) । ७. ऊपरीपन । अटकलण्च्चू निरीक्षण (को०)। ८. गमगुसार सं-पु. [फा० गमगुसार] वह जो किसी को कष्ट में देख : पासे का खेल (को० । कर दुःखी होता हो। सहानुभूति रखने य दिखलानेवाला। गम - संचा लो. [सं० गम्य] (किसी वस्तु या विषय में ) प्रवेश । हमदर्द। पहुच । गुजर । पैठ। जैसे जिस विषय में तुम्हारी गम नहीं मजदा पि० [फा० गमजदह] संतप्त । दुःखी । विन्न । . है, उसमें न वोलो। उo----(क).चींटी जहाँ न चढ़ि सकै राई गमत मं पुं० [सेवामन या गमय पयिक] १. गस्ता । मार्ग। नहिं ठहराइ । आवागमन कि गम नहीं तह सकलो जग जाइ। २. पेशा । व्यवसाय । --कदीर (शब्द०)(ख) असुरपति अनि ही गर्व धरघो। गमतखाना-संज्ञा पुं० [अ० गमद-कुए में जल की अधिकता नाव तिह' भुवन भरि गम है मेरो मो सन्मुख को माड़ ?- में वह स्थान जहाँ पानी रसकर या छेदों से आकर इकट्ठा सूर (शब्द०)। महा०-गम करना- चट कर जाना । पेट में डाल लेना। खा लेना। होता है और स्लोचकर बाहर फेंक दिया जाता है । बंधाला : गमतरी।--(लश०)। उ०-चारि वृक्ष छह शाखा वाके पत्र अठारह भाई। एतिक ले गया गम कीन्हों गया अति हरहाई ।-कवीर (शब्द०)। गमतरी-संशा सी० [अ० गमद ] गमतखाना। बंधाल (लश०), गम. संक्षा पुं० [अ० गम] १. दुःख । शोक । रंज।. .. गमता-संद्या वि० [अ० गमद ?] [ श्री. गमती] चूनेवाला (लश०)। मुहा०—म खाना=क्षमा करना । जाने देना । ध्यान न देना। गमथ-संञ्चा पु० [सं०] १. मार्ग। राह। २. व्यापार । पेशा। ३. उ०-तस्कर के कुत धर्म, दुष्ट के कुत गम खाना।--रघुनाथ आमोद प्रमोद । ४. राह चलनेवाला । पथिक। .... . (शब्द०)। गम गलत करना-दुःख भुलाना । पोक, दूर करने गमन-संघा पुं० [सं०] [वि० गमनीय, गम्य] १. जाना । चलना। का प्रयत्न करना। यात्रा करना । २. वैशेपिक दर्शन के अनुसार पाँच प्रकार के २. चिता। फिक्र । ध्यान । उ०-- सस सर जिन वेधिया सर, विनु गम कछ नाहिं । लागि चोट जो शब्द की करक करेजे कर्मों में से एक। किसी वस्तु के क्रमशः एक स्थान से दूसरे माहिं ।-कबीर (शब्द०)।". स्थान को प्राप्त होने का कर्म । संभोग । मैथुन । जैसे, गमक'- वि० [मं० [वि०सी० गमिका ] १. जानेवाला । २. वेश्यागमन । ४. राह । रास्ता। ५. सवा आदि, जिनकी ..बोधक। सूचक । बतलानेवाला। सहायता से यात्रा की जाय । ६. प्राप्त करना । पहुचना (को०)। गमक'- संघा पुं० [सं०] १. संगीत में एक श्रुति या स्वर पर से दूसरी यौ०-गमनागमन = पावागमन । आना जाना। थति या स्वर पर जाने का एक प्रकार । गमनना@----कि० अ० [सं० गमन+हिना (प्रत्य॰)] जाना।