पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१६५

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- गर्गत्रिरात्र जन ३० गरज" या बादलों गफल-संचा पुं० [सं०] १. जवास २. अथर्ववेद के परिशिष्ट के अनुसार एक प्राचीन ज्योतिपी.। ३. किनारे किनारे. 'माग जलाई जाती है, जिससे तेल सिमट

धर्मशास्त्र के प्रवर्तक एक ऋषि । ४. वितथ्य राजा का एक ..सिमटकर. गड्ढे में इकट्ठा होता जाता है और तीसरे चौथे

पुत्र 1.५. नंद के एक पुरोहित का नाम । ६. वैल । साँड़ 1७८ .. दिन गड्ढा, भर जाता है । जो तेल मिट्टी पर बहकर जम जाता - एक कीड़ा जो पृथिवी में घुसा रहता है। नगोरी.। ...बिच्छू । । है, उसे खुरचकर पत्तियों में लपेट लेते और जंगलों में मोम- - केंचुग्रा। १०. एक पर्वत का नाम । ११. ब्रह्मा के एक वत्ती की तरह जलाते हैं । आसाम और वरमा का होलंग .."मानसपुत्र का नाम जिसकी सृष्टि गया में यज्ञ के लिये हुई। ... नामक सदावहार वृक्ष भी इसी जाति का है, जिसका निर्यास . " : थी। १२.संगीत में एक ताल। . ..... ... विरोजे की तरह का और सफेद होता है। इस जाति के कुछ -'. विशेप--इसमें चार द्रुत मात्राएँ और अत में एक खाली या वृक्षों का निर्यास अधिक गाढ़ा होता है और राल की तरह - विराम होता है। . . ... ..... .. जलाने के काम में आता है। यह वृक्ष वीजों से उगता है और -..गर्गत्रिरात्र-संज्ञा पुं० [सं०] कात्यायन श्रौत सूत्र के अनुसार, एक इसके फल तथा वीज शाल के फलों और बीजों की तरह होते प्रकार का योग . जो तीन दिनों में होता है। हैं। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत और प्रति घन फुट २५-३०. गर्गर संवा मुं० [सं०] १. भंवर । २. एक प्रकार का प्राचीन वाजा , सेर भारी होती है और नाव तथा घर बनाने के काम में - जो वैदिक काल में बजाया जाता था। ३. गागर । ४. एक ..

..:प्रकार की मछली। ..

..... गर्जना-क्रि० अ० [सं० गर्जन ] दे० 'गरजना' । उ०-चलत गर्गरो-संशश ली [सं०] १. वह वर्तन जिसमें दही मथा जाता है। दसानन डोलत अवनी। गर्जत गर्भ लवहि सुर रवनी।-- तुलसी (शब्द०)। ... माठ । दहेड़ी। २. गगरी । कलसी । ३. मथनी। ' ... '.. . गर्जर-संशा पुं० [सं०] गाजर [को०) । - गज-संक्षा औ० [सं० गर्जन] दे० 'गरज'।.. .... गर्जा-संश्वा खो० [सं०] बादलों का गर्जन [को॰] । • गर्ज-संवा पुं० [सं०] १. हाथी की चिग्घाड़ । २. मेघ या वादलों 'का. तरजनो। रखना । ३. गर्जन । ४. वह हाथी जो चिंघाड ३. गर्जन। ४. वह हाया जा पा गजाफल संज्ञा पुं० [सं०] १. जवासा । विकंटक । २. यत लिया। ३. भर्त्सना [को०) । -... ' रहा हो [को०] । . . . गजि--संशात्री० [सं०] वादलों का गरजना [को० । गर्ज३संझौ०० गरज] दे० 'गरज'।..... .... गजित वि० सं० गा हया ।। यौ.--गर्जमंद-दै गरजमंद । उ०, गर्जमंद सब हैं ।- सुनीता Wir गर्जित-संज्ञा पुं० १.मेघगर्जन । बादलों का गरजना । २.मत्त या मतवाला.हाथी (को०) । ___ गर्जक-संवा पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली को।... गर्जक-वि० गरजने वाला [को०)। ith.गत-संधा पुं० [सं०] १. गड्ढा । गड़हा । २. दरार । ३. घर। ४. .......... रथ । ५. जलाशय । ६. एक नरक का नाम । ७. नहर (को०)। गर्जन'- संज्ञा पुं० [सं०] १. भीपण ध्वनि । गरजना.। ग़रज।। ... गभीर नाद ।। ६. समाधि या कद्र (को०)। ६. एक प्रकार का रोग (को॰) । । यो०- गर्जन तर्जन= (१) तड़प। (२) डॉट डपट । १०. विगतं देश का भागविशेष (को०)। ११. सिंह की माँद . या गुफा (को०)। '.. २.शोर । अावाज। कोलाहल (को०)। ३: क्रोध । पावेश [को०1" .: ४. संग्राम । रण। युद्ध (को०)। ५. तिरस्कार । झिड़को। यो०-गतथिय-बिलेशय या बिल में रहनेवाले जीव । जैसे. . भत्र्सना [को॰] । - चूहा, खरगोश यादि। गर्जन-संज्ञा पुं० [देश] शाल की जाति का एक पेड़ । .... .. गर्तकी-संज्ञा की० [सं०] वह जगह जहाँ जुलाहे वस्त्र बुनते हैं । जुलाहे का कपड़ा बुनने का स्थान [को०] । . विशप-इसके जंगल के जंगल हिंदस्तान में टाबंकोर, मलावार, गर्ता--संचा बौ. [ सं०] १. विल 1 छेद । २. गुहा । गुफा । बोह - '... कनारा, कोंकन, चटगाँव, वरमा, अंडमान आदि में पाए जाते को०] ।

हैं। इसके पेड़ पीले रंग के, सीधे और सौ सवा सी हाथ ऊचे

गतिका-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'मतंकी। होते हैं और इनकी डालियाँ बहुत दूर तक नहीं फैलतीं। इनके गर्थ -संज्ञा पुं० [हिं० गय, गरथ ] संपत्ति । उ०—ठुनिया संच कई भेद हैं, जिनमें से कुछ सदाबहार भी होते हैं। इस पेड़ से गर्य भंडारा सोना रूपा दाम रे। राम धर्म०, पृ० २१८ । ..... एक प्रकार का निर्यास निकलता है जो कभी कभी इतना पतला -... होता है कि वह अलसी के तेल की तरह रँगाई के काम में गर्द'-वि० [सं०] गरजने या चिल्लानेवाला [योग

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- लाया जाता है। यरमा में दो प्रकार के गर्जन होते हैं। एक गर्द-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] धूल । राख । खाक। .... ... तेलिया गर्जन जिसका निर्यास- लाल रंग का होता है, और क्रि० प्र०-उठाना ।-उड़ाना। - दूसरा. सफेद 'गर्जन जिसका निर्यास सफेद रंग का होता है। मुहा०-गर्द उठना या उड़ना--हवा के साथ घल का "इन दोनों के निर्यास पतले और अच्छे होते है। तेल निकालने गर्द उठाना--दरी की बुनावट में नीचेवाले डंडे के तागों को की विधि यह है कि नवंबर से मई तक इसके पेड़ की जड़ में बैठा चुकने के बाद, रस्सी के दोनों छोरों को खडी लकड़ी दो तीन गहरे चौकोर 'गडढे खोद दिए जाते हैं। फिर उनके बांधकर ऊपर के डंडे के तागों को बैठाना या जमाना। न .