पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१८२

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गहवराना गहबराना' क्रि० स० [हिं० गहबरना ] घबरा देना। व्याकुल गुहा०-गहरा पेट-ऐसा पेट जिसमें बहुत सी बातें पच जाय। करना । घबराहट में डालना । विकल करना। ऐसा हृदय जिसका भेद न मिले । जैसे,—उसकी बातें कोई गहबराना-कि० अ० दे० 'गहवरना' । .. नहीं जान सकता; उसका बड़ा गहरा पेट है। ... गहवह--संज्ञा सी० [हिं॰] दे॰ 'गहमह । २. जो सतह से नीचे दूर तक चला गया हो। जिसका विस्तार गहमह-संवा बी० [हिं०] चहल पहल । उ०—गोकुल गरघारिन मैं नीचे की ओर अधिक हो। जैसे,--गहरा गड्ढा, गहरा महा गहमह मांची।-घनानंद, पृ० १४० । बरतन । ३. बहुत अधिक । ज्यादा । घोर । प्रचंड । भारी। गहमहई।---संज्ञा स्त्री० [हिं० गहमह ] चहल पहल की स्थिति । जैसे,—गहरा नशा, गहरी नींद, गहरी भूल, गहरी मार, प्राचुर्य । अधिकता। गहरी चोट, गहरी मित्रता इत्यादि। . गहमागहमी -संशा को [ हिं० गहमह ] १. चहल पहल । गर्म मुहा०-गहरा असामी-(१) भारी आदमी। बड़ा पादमी। बाजारी । रौनक । धूमधाम । २. भीड़ भाड़ । जन संम। ज्यादा देनेवाला । गहरे लोग चतुर लोग । भारी उस्ताद । गहर'-संघा क्षी० [हिं० घड़ी, धरौं या सं० ग्रह अथवा फा० गाह- धोर धूर्त । ऐसे लोग जिनका भेद कोई न पाये । जैसे,- समय ?] देर । विलंब । उ०--गहर जनि लावहु गोकुल लड़के घड़ी कैसे उड़ा ले जायेंगे। यह गहरे लोगों का काम जाइ । तुमहिं विना व्याकुल हम होइहैं यदुपति करी चतु है। (२) ऐसे लोग जिनकी विद्या गंभीर हो । विद्वान् लोग। राइ । —सूर (शब्द०)। गहरा हाय-हथियार का भरपूर वार जिससे खूब चोट लगे। गहरु-संवा पुं० [सं० गह्वर या गभीर, हिं० गहिर ] दुर्गम । गूढ़। शस्त्र का पूर्ण आधात । गहरा हाथ मारना=(१) हथियार उ०-मन कुजर मयमंत था फिरता गहर गंभीर । दोहरी का भरपूर वार करना । (२) भारी माल उड़ाना । खूब धन तेहरी चौहरी परि गइ म जंजीर !--कवीर (शब्द०)। चुराना । (३) बहुत माल पैदा करना । किसी बड़ी भारी गहर-वि० [सं० गम्भीर ] १. गहरा । उ०-~लज्जित ह घंसि या अनूठी वस्तु को प्राप्त करना । जैसे,—इस बार तो तुमने गई जल गहरे । उठत जु तामैं दुति की लहरै । -नंद० प्र०, गहरा हाथ मारा। पृ० २६८ । २. ऊंची और भारी। जोर के साथ । मंद्र ४. दृढ़ । मजबूत ! भारी। कठिन । उ०—तील तराजू छमां (आवाज वा ध्वनि)। उ०-गज्जि गहर नीसांन अग्गि सुलच्छरण तब वाके घर जैयौ। कहैं कवीर भाव विन सौदा अगवान विछुट्टिय । दरिया दधि किय मथन भोम फट्टिय गहरी गांठ लगयो ।—कबीर (शब्द०)। ५. जो हलंका यो खह तुट्ठिय ।-पृ० रा०, १॥ ६३६ । पतला न हो । गाढ़ा । जैसे,—गहरा रंग, गहरी भंग। । गहरना'-क्रि० अ० [हिं० गहर=देर ] देर लगाना । विलंब __ मुहा०—गहरी घुटना=(१) खूब गाड़ी भंग घुटना या पिसना । करना । उ०---ठहरत आवै मनमोहन महरनंद, ठहरत यावे (२) गाढ़ी मित्रता होना । (२) साथ में खूब प्रामोद प्रमोद पुज परिमल पुर को । सेवक त्यों गहरत पावै ज्यों ज्यों होना । जैसे,--उन लोगों की आजकल खूब गहरी धुटती है। बाँसुरी सों कहरत आवै मन मेरो मानि दूर को। -सेवक गहरी छनना=(१) खूव गाढ़ी या अधिक भंग का पिया (शब्द०)। जाना । (२) गाढ़ी मित्रता होना । अत्यंत घनिष्ठता होना। गहरना--कि० अ० [अ० कहर ] १. झगड़ना । उलझना । उ बहुत हेल मेल होना। (३) साथ में खूब प्रामोद प्रमोद तुम सौं कहत सकुचति महरि । स्याम के गुन कछु न जानति होना । खूब घुल घुलकर बातचीत होना । गहरी सांस जात हमसों गहरि ।-सूर०,१०! १४२२ । २. कुड़ना । लेना-ठंढी सांस लेना। संतोप या अतीत का स्मरण करना। नाराज होना । उ०-सुनत श्याम चक्रित भए बानी। ...... गहराई-संशा सी० [हिं०. गहरा+ई (प्रत्य॰)] गहरा का भाव । अधर कंपरिसि सौंह मरोरचो मन ही.मन गहरानी ।-सूर गहरापन । गांभीर्य। (शब्द०)। गहराना-क्रि० स० [हिं० गहरा ] गहरा होना। . .. महरवार- संज्ञा पुं० [हिं० गहिरदेव =एक राजा ] एकक्षत्रिय वंश। गहराना२-क्रि० स० गहरा करना। विशेष--इस वंश के लोग गोरखपुर और गाजीपुर से लेकर गहराना-क्रि० अ० [हिं० गहर ] नाराज होना । रूठना । ६० कन्नौज तक पाए जाते हैं। ये लोग अपना आदिस्थान प्रायः - गहरना', 'पहराना' । काशी बतलाते हैं। जयचंद से चार पांच पीढ़ी पहले के चंद्रदेव गहरापन संग पुं० [हिं० गहरा+पन (प्रत्य॰)] गहरा होने और महीपाल यादि कन्नौज के राजा गहरवार थे, ऐसा शिला- का भाव । गहराव.। लेखों से पाया जाता है । वुदेलखंड के बुदेले क्षत्रिय भी अपने गहराव-संवा पुं० [हिं० गहरा--प्राव (प्रत्य॰)] गहराई। फो काशी के गहरवार वंश से उत्पन्न बतलाते हैं। गहरू---संज्ञा स्त्री० [हिं० घडी, घरी या फा० गाह-समय ?] गहरा--वि० [सं० गम्भीर, पा० गहीर ] [ वि० सी० गहरी] १. देर । विलंव । उ०--(क) तू रिति छाडि राधे राधे । . (पानी) जिसमें जमीन बहुत अंदर जाकर मिले । जिसकी ज्यों ज्यों तो कों गहरु त्यों त्यों मो कों विथा री साधे थाह बहुत नीचे हो । गंभीर । निम्त । अतलस्पर्श । जसे, गहरी साधे ।--हरिदास (शब्द॰) । (ख) नेग. चारु कह नागरि नदी । उ०-- जिन दूदा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ । हौं : म हरु लेगावहिं । निरखि निरखि आनंद सुलोचनि पाहि । वोरी टू ठन गई रही किनारे वै०।-कवीर (शब्द०)। तुलसी (शब्द०)।