पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१९३

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- गातव्य , ,१२७० . गादर गातव्य-वि० [सं०] गाने योग्य । गेय [को०। गात्रसौष्ठव-संचा पुं० [सं०] शरीर की सुंदरता । देह की सुघराई। . गाता --संवा 'पुं० [सं० गात गातु, गातू (गाता)] १. गानेवाला। गात्रानुलेपनो-संवा श्री० [सं०] उबटन । अंगराग [को०] । . : गवया । उ०----जयति रन अजिर' गंधर्व गन गर्वहर फेरि गात्रावरण-संशा गुं० [सं०] शरीर ढकदेवाली वस्तु । कवन । जिरह- .. किय राम गुन गाथ गाता।-तुलसी (शब्द०)। २.गंधर्व। वन्तर (को०)। . . देव गायक (को०)। गाथ-संसा पुं० [सं०] १. गान ! २.स्तोत्र। . गातार संज्ञा पुं॰ [देश॰] ३० गत्ता'।" : : गाथ-संज्ञा की० [सं० गाया] १. यश । प्रशंसा। उ०-उत्तम गाथ गातानुगतिक-वि० [सं०] दे० 'गतानुगतिक'। . . सताथ जब धनु श्री रघुनाथ जी हाथ के लीनो। केशव गाती--संश्वा ली० [in गात्री या गात्रिका] १. वह चद्दर जिसे प्राचीन (शब्द०)। २ कथा। वृत्तांत। हाथ। उ०-गुरु शिप के काल में लोग अपने शरीर पर लपेटते थे और अब भी संवाद की कहीं अब गाथ नवीन । पेखि जाहि जिज्ञासु जन, साधु लोग अपने गले में वाँध रहते हैं। स्त्रियाँ बच्चों के गले होत विचार प्रवीन !-निश्चल (शब्द०)। . - "में अब भी गाती बांधती हैं । उ०-सारी सुभग का सब गायक-संधा पुं० [सं०] [स्त्री० गायिका गानेवाला । गायक । दिये । पाटवर , गाती सब दिये । एकन जाइ दूर हरि पाये। गाथा-संवा श्री. [सं०] १. स्तुति । २.वह श्लोक जिसमें स्वर का सन देइ राधिका बुलाये ।-सूर (शब्द०)। . नियम न हो । ३.प्राचीन काल की एक प्रकार की ऐतिहासिक क्रि०प्र०कसना |--बाँधना :--लगाना। रचना जिसमें लोगों के दान, यज्ञादि का वर्णन होता था। . मुहा०- गाती मारना=गाती बांधना। ४. आर्या नाम का वृत्ति। ५. एक प्रकार की प्राचीन भाषा ..२.चद्दर या अंगोछा लपेटने का एक ढंग जिसमें उसे शरीर के जिसमें संस्कृत के साथ कहीं कहीं पाली भाषा के विकृत शब्द चारों ओर लपेटकर गले में बांधते हैं। भी मिले रहते हैं। ६. श्लोक । ७.गीत । ८. कथा । वृत्तांत । .. गातु-संशा पुं० [सं०] १. कोयल । २.भीरा । ३. गंधर्व 1४. गया। हाल । ६.बारह प्रकार के बौद्ध शास्त्रों में चौया। १०. गानेवाला । ५. गान । ६. चलनेवाला । पथिक । ७. पृथ्वी । शाला शिकवी । . पारसियों के कारण धर्मग्रंथ का एक भेद । जैसे-गाया अवैति म. गाथा उप्टवैति इत्यादि। - वान-मंशा पुं० [सं०] १.अंग.। देह । शरीर । २. हाथी के अगले । गाथाकार-संचा पं० [सं० गाया+/> कार (शब्द॰)] १ प्राकृत ... पैरों का ऊपरी . भाग। ३. शरीर का कोई अंग या " की गाथा रचनेवाला व्यक्ति। २.स्तुति कान्ध का रचयिता । ... अवयव (को०)। ३. गायक । गया। ... गात्रक-महा पुं० [सं०] शरीर [को०। गाथिक-संज्ञा पुं० [सं०] [ौ० गायिका] दे॰ 'गायक [को०] | ". गावकर्पण-संज्ञा पुं० [सं०] शरीर का कृश या कमजोर होना (को०)। , गाथी-संज्ञा पुं० [सं० पायिन्] १. सामवेद गानेवाला। २. वह . गात्रगुप्त-संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम जो लक्षणा' । , व्यक्ति जो गायन से परिचित हो (को॰) । . . . या लक्ष्मणा के गर्भ से उतान हुए थे। .. गादी-संघा संथा [मं० गाव=जल के नीचे का तल] १.तरल पदार्थ गावभंगा-संजा लो० सं० गात्रना] केवाच । काँच। - के नीचे बैठी हुई गाड़ी चीज । तलछट । गात्रमार्जनी संज्ञा स्त्री० [सं०] अंगोछा । तौलिया (को०। महा-गाद वैठना-(२) तलछट बैठना। (२) कीट जमना । -गावरह-संज्ञा पुं० [नं०] वाल । रोयौ ! रोम [को०] । २. तेल का चीकट । कीट। ३. गाड़ी चीज । जैसे,-गोंद, गात्रयष्टि-संशा श्री० [सं०] १. दुबला पतला शरीर । २.शरीर [को०। राव। गोत्रलता - संा बी० [सं०] दे० 'गायप्टि'। ', गात्रवत्-संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम जो लक्षणा के नाताव [स० कातर या कदय, प्रा० फादरकावर । डरपोका

.... भीन्.1 . -'.... गर्भ से उत्पन्न हए थे। गात्रगुप्त। . गादड़ -संज्ञा पुं० १. वह बैल जो मारने पर भी न चले । २. बी. गात्रवर्ण-संज्ञा पुं० सं०] स्वरसाधन को वह प्रणाली जिसमें सातो । । गादड़ी] गीदड़ | सियार। - : स्वरों में से प्रत्येक का उच्चारण तीन बार करते हैं। जैसे- गादड़ -संज्ञा पुं० [सं० गड्डुर] भेड़ा । मेढ़ा । मेप। ..सासा सा, रेरेरे, ग ग ग आदि । गादर-वि० [सं० कातर या कदर्य, प्रा० कादर] १.डरपोक । गाविद-संवा पुं० [सं० गात्रविन्द] श्रीकृष्ण के एक पुत्र जो लक्षणा ___.भीर । कायर । २. सुस्त । मट्ठर । । के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। गादर-वि० [हिं० गदराना] गदराया हुआ। - गात्रसंकोचनी-संज्ञा औ० [सं०] साही नामक जंतु [को०] । गादर-संशा पुं० १. वह बैल जो जोतने पर मारने से भी आगेन ... विशेप-यह उछलते या छलांग मारते समय अपने शरीर को बढ़े। २. [सी० गादरि, गादरी] गीदड़ । उ०-तहां भूपं ..: सिकोड़ लेता है। देवे अस सपना । पकरेउ पैर गादरी अपना । भूप छुड़ायो - गात्रसमित--वि० [सं० गात्रसम्मित] तीन महीने के ऊपर का (गर्भ)। चाहत निज पर । तजत न गादरि पकरि जो पन रग।- ....... (गर्भ) जिसका शरीर बन गया हो। निश्चल (गन्द०)।