पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२०६

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गिरंगिरी १२०३ गिरना इसकी टहनियों से दतुअन का काम लेते हैं । घरमावाले कभी गिरदालो-संवा पी० [फा० गिर्द ] वह लंबी अंकुसी जिससे गला कभी चंदन के स्थान में इसकी सुगंधित छाल का भी व्यवहार हुआ कच्चा लोहा समेट समेटकर एकत्र किया जाता है ।- करते हैं। (लोहार)। गिरगिरी-संज्ञा स्त्री० [अनु॰] लड़कों का एक खिलौना जो चिकारे गिरदावर-संघा पुं० [फा गिविर] दे० 'गिर्दावर' । या सारंगी के ढंग का होता है। उ०---फूले वजावत गिरगिरी गिरदावरी- संचासो [फा०] १.गिरदावर का काम । २.गिरदावर गार मदन भेरि पहराइ अपार संतन हित ही धूल डोल !- का पद। सूर (शब्द०)। गिरद्द-संश पुं० [फा० गिर्द ] दे० 'गर्द' । उ०—गिरदं उड़ी | गिरजा'--संज्ञा पुं० [देश॰] कीड़े मकोड़े खानेवाला एक प्रकार का भान अंधार रैनं । गई सूधि सुझझ नहीं गभिक नैनं ।-- | पक्षी। पृ० रा०, ५॥६५॥ विशेष - यह पंजाब और राजपूताने के अतिरिक्त सारे भारत गिरदध-अव्य० [फा० गिर्द]। घेरा। उ० - पंगह सुवीर गढ़ करि | में पाया जाता है। यह प्रायः सिंघाड़े के तालाबों के आसपास गिरधा सर्वरी परस चंदा सरद।-पृ० रा०.२६।४२ । । रहती है और ऋतुपरिवर्तन के अनुसार अपना स्थान भी गिरधर-संश पुं० [सं० गिरि-+-धर] १. वह जो पहाड़ को धारण . बदला करता है । यह बहुत तेज उड़ता है और इसका शब्द फरे । पहाड़ उठानेवाला व्यक्ति । २. कृष्ण ! वासुदेव। । बहुत धीमा और विचित्र होता है । यह वृक्षों पर घोंसला यौ०-गिरधर गोपाल-कृष्ण जी । बनाता है । इसके स्वादिष्ट मांस के लिये लोग इसका शिकार गिरधारन@---मंधा पुं० [से. गिरि+धारण] दे० 'गिरधर। करते हैं। गिरधारा--वि० [सं० गिरि+धार] दुर्गम पहाड़ी मार्ग । पहाड़ गिरजा-संक्षा पुं० [पुर्त० इग्रेजा] ईसाइयों का प्रार्थना मंदिर। की चोटी पर का सकरा और संकटपूर्ण मार्ग । उ०--जाइ गिरजा-संथा खी० [सं० गिरिजा दे० 'गिरिजा'। तहाँ का संजम कोज, विकट पंथ गिरधारा ।--दादू, गिरजाघर-संशा पुं० [हिं० गिरजा+घर ] ईसाइयों का प्रार्थना- पृ० ५०६ । । मंदिर । गिरजा। गिरधारी -संक्षा पुं० [हिं० गिरिधारी] दे० 'गिरधर'। गिरम-संज्ञा स्त्री० [सं० गृद्ध ?] मादा गिद्ध । गिद्धिनी। उ० गिरना-कि० अ० [सं.मलन-गिरना] १. आधार या अवरोध के गिरझ पाते ले चाली, जाण पतंग डोर ।-नट०,१० १७१।। अभाव के कारण किसी चीज का. एकदम ऊपर से नीचे पा गिरद -अव्य० [फा गिर्द] दे॰ 'गिर्द' । उ०-लई सौरई अरु जाना । रोक या सहारा न रहने के कारण किसी चीज का साडौरो । लूटे गांव गिरद के औरो। - लाल (शब्द०)। अपने स्थान से नीचे आ रहना। जैसे,-छत पर से गिरना गिरदा-संघा . [ फा गिर्द ] १. घेरा। चक्कर । २. तकिया। हाथ में से गिरना, कुएं में गिरना, आंख से आंसू गिरना गेडुमा । बालिश । उ०----भने रघुराज कोई गादी गिरदाप प्रोस, पानी या प्रोले गिरना। चढ़े, कोई गोद गेरे हरे हरे लपटाइ के। रघुराज (शब्द०)। संयो॰ क्रि०--जाना ।—पड़ना। ३.काठ की थाली जिसमें हलवाई लोग मिठाई रखते हैं। २.किसी चीज का खड़ा न रह सकना या जमीन पर पड़ जाना। ४.वह कपड़ा जो दरवार के समय राजाओं के हुक्के के नीचे जैसे--मकान का गिरना, घोड़े का गिरना, पेड़ का गिरना। बिछाया जाता है । ५. ढाल । फरी । ६. ढोल या खेजड़ी यौ---गिरना पड़ना । जैसे;--वह गिरते पड़ते किसी प्रकार का मेड़रा। घर पहुंचा। गिरदाइय -संञ्च पुं० [फा० गिदर्दाब] घेरा। आवर्त । उ०-दस हथ्था परिमान पीठ छत्तो गिरदाइय। -पृ० रा०.२४.३३४। ३.अवनति या घटाव पर होना। हासोन्मुख होना। जैसे,-- गिरदागिरद-क्रि० वि० [हिं० गिर्दागिर्द] दे० 'गिर्दागिर्द'। , किसी जाति या देश का गिरना। ४ किसी जलधारा का गिरदाना---संज्ञा पुं० [हिं० गिरगिट] गिरगिट । उ०-मछली मुख किसी बड़े जलाशय में जा मिलना । जैसे,--नदी का समुद्र में जस केंचुभा मुसवन मुह गिरदान । सर्पत मुहैं गहेजुवा जाति गिरना, मोरी का कुंड में गिरना। ५. शक्ति, स्थिति,प्रतिष्ठा सवन की जान । -कवीर (शब्द०)। या मूल्य आदि का कम या मंदा होना । जैसे- किसी मनुष्य गिरदानक--संज्ञा पुं० [फा गिर्द] करंगाह की लकड़ी जो लपेटन में का (किसी की दृष्टि या समाज में) गिर जाना, बीमारी के - उसे माने के लिये लगी रहती है। (जुलाहे)। कारण शरीर का गिर जाना, भाव या बाजार गिरना । । गिरदाना–संज्ञा पुं० [ फा गिर्द ] लगभग एक हाथ की लंबी यौ०--गिरे दिन दरिद्रता या दुर्दशा का समय । ... चौपहल लकड़ी जो तूर के छेद में पड़ी रहती है ।- ६.किसी पदार्थ को लेने के लिये बहुत चाव या तेजी से आग (जुलाहे)। बढ़ना । टूटना । जैसे,--कबूतर पर वाज गिरना, माल पर गिरदाव-संक्षा पुं० [फा गिब] जलावर्त । भवर।' उ०-गया । खरीदनेवालों का गिरनी, यात्रियों पर डाकुओं का गिरना । होश विस तिस करें तांब में, डूब्या ज्यों पड़ गम के गिरदाव ७.जीणं या दुर्बल होने अथवा इसी प्रकार के अन्य कारणों से में 1-दश्विनी, पृ० १४४।। किसी चीज का अपने स्थान से हट, निकल या झड़ जाना।