पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२४५

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गुहारि . . १३२२ -जना मक्षारि@:-संवा स्त्री : [हिं० गुहार] दे० 'गुहार' । उ०--नीकी अमृत कहा अमित गुन प्रगट सोहन कहा यता। सूरदास .., दई अनाकनी फीकी परी गुहारि 1--विहारी (शब्द०)। गूगे के गुर ज्यों बूति कहा बुझाथ-सूर (शब्द॰) । नहारी-शा रखी० [हिं०] दे० 'गुहार' । उ०--बात कहत भई देश विशेप-गुगा मनुष्य गुड़ का स्वाद अनुभव तो करता है पर उसे गुहारी। जायसी (शब्द०)। . प्रकट नहीं कर सकता। हाल-संक्षा पु० मि० गोशाला गोशाला। गायों के रहने का गूगे का गुड़ खाना-गूगे के द्वारा गुढ़ का पाया जाना । उ.--- (क) नैनहि दुरहिं मोति यो मूगा । जस गुर चाय रहा है - स्थान . गुहाहित'–वि० [सं०] हृदयस्य । हृदय में स्थित [को०] । गूगा ।-जायसी (शब्द०)। (ब) ज्यों नूगा गुर चाइक स्वाद न सके बखानि ।—तुलसी (शब्द०)। गुहाहित - संघ मुं० परमात्मा [यो । विशेप-बहुत लोगों ने विशेषकर उर्दू वालों ने 'मूगे का गुद

गहिन-संज्ञा पुं० [सं०[ जगल । वन (को० ।

- गृहिल–संश पुं० [सं०] धन । संपत्ति कि०। का मतलब 'गे का दिया हुअा गुड़े' समझा है और इसी अर्थ में इसका प्रयोग भी किया है । ऐसा प्रयोग अशुद्ध है, जैसा गुहेर-संश) पु० [सं०] १.अभिभावक । रक्षक । २.लोहार (को०] । गहेरा-संशा पुं० [सं० गोध, हि० गोह। गोह नाम का कीड़ा । गोध। हिंदी कवियों के उदाहरणों से स्पष्ट है। गूगे का सपना होना=दे गुग का गुड़ होना। गुहेरी-संशा खी० [सं० गोवेरिका] गुहाँजनी । विलनी । सा गूगी --संशा सी० [हिं० मूगा] १. स्त्रियों की गली में पहनने ... गुहय --वि० [सं०] १. गुप्त । छिपा हुया । पोशीदा । २.गोपनीय। म की एक प्रकार की विछिया जो आकार में गोल होती है। २. छिपाने योग्य । ३. गूड़। जिसका तात्पर्य सहज में न समझा। - जा सके। दोमुहा साप ।। ३. चुप्पो । मौन । क्रि० प्र०-साधना = चुप्पी साधना । चुप हो जाना। -... गुह्य--संशा पुं० १. छल । कपट । दंभ । २. काया । कच्छप । यौ-मूगी पहेली-वह पहेली जो मुह से न कही जाय, इशारों ... ३. गुदा, भग, लिंग आदि गोपनीय अंग। ४. विष्णु । ५. में कही जाय। F. . शिव। गगीर-वि० स्त्री० [हिं० 'गा' का सो०] गूगापन वाली। जो बोल गुह्यक-संशश पुं० [सं०] वे यक्ष जो कुवेर के खजानों की रक्षा करते न सकती हो। ..है। निधिरक्षक वक्ष । गूच'- मंचा स्त्री॰ [सं० गुज्ज अथवा सं० गुजा) गुजा । धुपची। यो०- गुपकेश्वर । :: . गूचर-संक्षा डी० [देश॰] एक प्रकार की मछली। गुह्यकेश्वर संका पुं० [सं०] कुबेर । गूछ संशा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की बड़ी मछली । छ। गुह्यदीपक-संघा पुं० [सं०] जुगुन [को । विशेप यह छह फुट तक लंबी होती है और भारत की राय गुह्यद्वार--संशा पुं० [सं०] मलद्वार । गुदा [को०)। नदियों में पाई जाती है। इसका मुह नीचे की ओर होता है। ... मुह्यनियंद--संज्ञा पुं० [सं० गुह्यनिध्यन्द] नूत्र [को०] । प्राकार भी इसका बहुत भद्दा होता है। यह प्रायः बहुत गहरे गुह्मपति-संदा पुं० [सं०] कुबेर । पानी में रहती है । इससे जल्दी नहीं फंसती। गुह्यपुष्प-संपा पुं० [सं०] पोपल [को०] । गूज-संक्षा स्त्री० [सं० गुरुज] १.भारों के गूजने का शब्द । गुह्यबीज---संशा पुं० [सं०] भूतृग कि । ... गुह्यभापण-संगा पुं० [सं०] नुप्त वार्ता । गुप्त मंत्रणा को। कलध्वनि । नुजार । भिनभिनाहट। 30-अपनी नीठी गूज से (भीरा) उसके रस को उनाता है और तब उसपर रस गुह्मभाषित--संश पुं० [सं०] गुप्त वार्ता । गुप्त मंत्रणा । लेने के लिये बैठता है।-अयोध्या (शब्द०)। २. प्रतिध्वनि । गू-प्रत्य. [फा०] यह समस्त पदों के अंत में लगकर १. रंग. व्याप्तध्वनि। देर तक बना रहनेवाला' शब्द । ३. लट्र में नीचे .: २ दंग; ३. भेद वर्ग, आदि अयं प्रकट करता है । जैसे, की और जड़ी हुई लोहे की यह कील जिसपर सट्टा घुमता - मौलगू, गेदुमगू ग्रादि । है।४. कान में पहनने की यालियों आदि में शोमा के लिये ..: गूग -@का गुम] १. गूगा। ३०-बहिरी सुन, गूग थोड़ी दूर तक लपेटा छोटा पतला तार। .. .पनि योल, रंग चल मिर न धरा -मूत्र, ११ । २. ग़जना-नि० अ० [सं० गुन्जन१.नौरी या मनिधयों का मिन- में बोलनेवाला । चुप। भिनाना। भारों का मधुर ध्वनि करना। गुजारना । उ०- गूगा'-पि० [फा. जुग जो बोल न सके ] [वि० सी० गूगो] जो फुले वर बसंत बन बस में कह मालती नवेली। ताप मदमाते .. बोल न सके। जिसके मुंह से स्पष्ट पद न निकले । जिसे से मधुकर गुजत मधुर रेली। हरिश्चंद्र (शब्द॰) । २. । वाणी न हो। मुरू। (किसी स्थान का) प्रतिध्वनित होना। जद से व्याव होना। गा--संभा पुं०वह मनुप्य या प्राणी जो बोल न सके। जैसे-बाजे के स्तर में सारा परमून उठा। मुहा०- गूगा का गुड़ होना=ऐसी बारा होना मिसका अनुभव हो संयो.मि.--उना-जाना। . पर बन न हो सके। एसी यात जो कहते न बने । उ०- ३. शब्द का चूब फैलना पोर देर तक बना रहना । यदि