पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३१४

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. घरटिया घरइया १३६१ मुहा०-घर बंद होनागोटी शतरंज के मुहरे आदि चलने का घरगृहस्थी-संज्ञा स्त्री० [हिं० घर + गृहस्थी ] परिवार के सभी .. रास्ता न रहना। सदस्य तथा उनके उपभोग की सभी वस्तुएँ। ८. कोई वस्तु रखने का डिब्बा या चोंगा । कोश । खाना । केस। घर घराना'-कि० अ० [अनुष्व०] पर्र धरै शब्द करना । कफ के जसे,-चशमें का घर, तलवार का घर । ६. पटरी आदि से कारण गले से सांस लेते समय शब्द निकलना। . घिरा हमा स्थान । खाना। कोठा । जैसे,—पालमारी के घर, घर घराना-संज्ञा पुं० [हिं० घर-1-घराना] कुल परिवार । वंश। .. संदूक के घर । १०. ग्रहों की राशि । ११. किसी वस्तु के अटने जैसे,-अंधा वाटे शीरनी घर घराने खोप। या सामने का स्थान । छोटा गड्ढा । जैसे,-पानी ने स्थान घरघराहट---संवा श्री- [अनुध्व० घरै घरं] १. ध धर शब्द निकलने . स्थान पर घर कर लिया है। का भाव । २. कफ के कारण गले से साँस लेते समय निकला :..., क्रि० प्र०-~-करना। हुया शब्द। १२. किसी वस्तु (नगीना आदि) को जमाने या बैठाने का घरघलाल-वि० [हिं० घर+घालना] दे० 'घरचाल'। उ-- स्थान । जैसे,----नगीने का घर। १३. छेद । बिल । सूराख । घरघलू बसुरिया को कोक हटकै । बैठी रहन न देति घरी घर ... जैसे,-छलनी के घर । बटन के घर । गौहन घरी है निपट के ।- घनानंद, पृ० ४८८। मुहा०-घर भरना-छेद मूदना । बिल बंद करना। घरघाल-वि० [हिं० घर+घालना ] घर विगाड़नेवाला । कुल ... १४. राग का स्थान । मुकाम । स्वर । जैसे,—यह चिड़िया कई की समृद्धि नष्ट करनेवाला। परिवार की बुरी दशा करने घर बोलती है। वाला । कुल में कलंक लगानेवाला। उ०-धरघाल चालक महा०-घर में कहना ठीक ठीक स्वर ग्राम के साथ गाना । कलहप्रिय कहियत परम परमारथी ।--तुलसी (शब्द॰) : घर से कहना=(१) ठीक ठीक स्वर के साथ गाना । (२) घरचालक-वि० [हिं०] दे० 'घरपाल' । उ०--(क) पर घरपालक . चिड़ियों का अच्छी बोली बोलना । कोकिल आदि का मधुर लाज न भीरा। बांझ कि जान प्रसव के पीरा-मानस, : स्वर से बोलना। १।६७ । (ख) छांडत क्यों है भूखो बालक । जनपालक ऐसे : १५. उत्पत्ति स्थान । मूल कारण । उत्पन्न करनेवाल" । जैसे,- घरपालक 1 नंद ग्रं०, पृ०२८। . (क) रोग का घर खाँसी । (ख) खीरा रोग का घर है । १६. घरघालणी ---वि० [हि० घरघालन ] घर उजाड़नेवाली। घर का गृहस्थी । घरवार । जैसे,—पर देखकर चलो। १७, घर का नाश करनेवाली । उ०--पणी बुरी घरधानणी पातर सूब असबाब । गृहस्थी का सामान । जैसे,--वह अपना इधर उधर पाम । बाँकी ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ५। घूमता है; मैं घर लिए बैठी रहती हूं।-(औ०)। १८. घरपालन-वि० [हिं० घर+धालन ] | वि० सी० घरघालने] भग या गुदेंद्रिय ।-(बाजारू)। घर बिगाड़नेवाला। परिवार में दुःख या अशांति फैलानेवाला । क्रि० प्र०--चिरना |--फटना । परिवार की दशा विगाड़नेवाला। कूल में कलंक लगानेवाला । " .. १६. चोट मारने का स्थान । वार करने का स्थान या अवसर । उ०-ये बड़े नैन दिखाय दे नेक तू ए घरघालनी घू घट- मुहा०-- घर खाली छोड़ना या देना=वार न करना । वार चूक वाली।-(शब्द०)। जाना। घरघुस, घरघुसड़, घरघुसा, घरधुस्सू-वि० [हिं० घर+धुसना] २०. आँख का गोलक या गड्ढा । २१. चौखटा । फेम । जैसे,-, ' दे० 'घर' शब्द के अंतर्गत । मुहा०'घरघुसना' । उ--अब भी तसवीर का घर । २२. वह स्थान जहाँ कोई वस्तु बहुतायत मैं अपने घरधुस्सू स्वभाव के कारण उन्हें छुट्टी नहीं दे पाता । । से हो । भांडार । खजाना । जैसे,---काश्मीर मेवों का घर है। -जिप्सी, पृ०७४ । २३. दांव । पेंच । युक्ति । जैसे,—वह कुश्ती के सब घर घरचित्ता-संज्ञा पुं० [हिं० घरचीतर ] एक प्रकार का साँप जो । जानता है । २४. केले, मज या बांस का समूह जो एकत्र घने प्रायः मनुष्यों के घर में ही रहा करता है। ... । होकर उगते हैं। घरजवाई - संथा पुं० [हिं० दे० 'घरजमाई'। .. यौ०-घर घाट-दांव पेंच। घरजमाई-संक्षा पुं० [हिं० घर+मजामाता, हि जवाई, जमाई] । घरइया - वि० [हिं० घर+ऐया (प्रत्य॰)] दे० 'घरैया' । ससुराल में स्थायी रूप से रहनेवाला दामाद । घरदामाद । घरका-वि० [हिं० घर ] दे० 'घराऊ' या 'घरू' । उ--इस प्रांत घरजाया-संक्षा पुं० हिं० धर+जाया उत्पन्न ] [बी० घरजाई । के निवासियों की घरऊ वातचीत ।-प्रेमघन॰, भा०.२, · दास । गुलाम । उ०—(क) राखे रीति प्रापनी जो होइ सोई . कीजै बलि, तुलसी विहागे घरजायउ है घर को।-जुलसी . । घरगिरस्ती--संज्ञा स्त्रीनहि.1 दे०. घरगहस्थी'। उ०-मैं तो घर- (शब्द०)। (ख) ही राधा की राधा मेरी। कार का गिरस्ती के बीच में हूँ। -सुनीता, पृ० २५। परजाई चेरी।--घनानंद, पृ० २७८ । . . घरगृहस्थ-संज्ञा पुं० [हिं० घर-सं० गृहस्थ ] परिवार के साथ घरटि @t-मंशा स्त्री॰ [सं० घरट्टिका ] चक्की । जाँता । 30 :। रहनेवाला व्यक्ति जो गृहस्थी के निर्वाह के लिये धनोपार्जन . पूजोनी घर रीघरटिया जग पीस रु खाय |--रामधा पृ०५३। -- पृ० ४६। जाय।--राम० धर्म,