पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३४२

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घोड़ाकरंज हय । संधव । हरि । चीती। जवन । शालिहोत्र । प्रकीर्णव । चर्मरोग और बवासीर तथा विप को दूर करनेवाला माना वातायन। चामरी। मरुद्रथ। राजस्कंध । विमानक । वह्नि। जाता है। दधिका । उच्चायवा। शाशु । अरुष । पतंग । नर । सुपररासु। घोडागाड़ा-संशा सी० [हि० घोड़ा+गाड़ी] १. वह गाड़ी जो पोड़े मुहा०. घोड़ा उठाना-घोड़े को तेज दौड़ाना। घोड़ा द्वारा चलाई जाती है। २. वह गाड़ी जो डाक के थैले ऐसी उलाँगना=किसी नए घोड़े पर पहले पहल सवार होना। जगह पहुँचाती हैं, जहां रेल इत्यादि नहीं गई रहती । बहुधा. घोड़ा कसना घोड़े पर सवारी के लिये जीन या चारजामा इस गाड़ी में घोड़े ही जोते जाते हैं । डाकगाड़ी। मेल काट । . कसना । घोड़ा खोलना=(१) घोड़े का साज या चारजामा घोड़ाचोली--संया स्त्री० [हिं० घोड़ा+चोला(शरीर)] वैद्यक की उतारना । (२) घोड़े को बंधन मुक्त करना । (३) घोड़ा एक प्रसिद्ध ओपधि जो अनुपान के भेद से बहुत से रोगों पर चुराना या छीनना । जैसे,- चोर घोड़ा खोल ले गए । दी जाती है। घोड़ा छोड़ना=(१) किसी और घौड़ा दौड़ाना। किसी के घोड़ानस-संशा सी० [हिं० घोड़ा+नस] वह मोटी नस जो पैर में. पीछे घोड़ा दौड़ाना । (२) घोड़े को घोड़ी से जोड़ा खाने के एडी से ऊपर की ओर गई होती है। लिये छोड़ना । घोड़े का घोड़ी से समागम करना। (३)घोड़े विशेप--कहते है, यह नस कट जाने पर यादमी या पशु मर को उसके इच्छानुसार चलने देना । (४) दिग्विजय के लिये जाता है क्योंकि शरीर का प्रायः सारा रक्त इसी के मार्ग से अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ना कि वह जहाँ चाहे वहाँ जाय । निकल जाता है। (५) घोड़े का साज या चारजामा उतारना। ५. 'घोड़ा घोड़ानोम-संद्या स्त्री॰ [हिं० घोड़ा+नीम] वकाइन वृक्ष । खालना । (5) मजाक करना । कोई ऐसी भोंड़ी बात कहना घाड़ापलास-संशा पुं० [देश॰] मालवंग की एक कसरत । . जिससे लोग हंसें। विशेप- इसमें एक हाथ मालखंभ पर उलटा ऍठकर सामने .. विशेष --भाड़ों के खेल तमाशे में अभिनेता शुरू शुरू में अपने २ खते हैं और दूसरे से मोगरे को पकड़ते हैं। जिधर का हाय . कोल्पनिक घोड़े की हास्यपरक प्रशस्ति करते हुए अपना अपना मोगरे पर होता है. उसी और का पांव मालखंभ पर फेंककर ... परिचय देते हैं। इसी से इस अर्थ में यह मुहावरा बोलचाल में सवारी बाँधते हैं और दोनों हाथ निकाले हुएताल ठोकते हैं। प्रचलित है। इस में मुह फूटने का डर रहता है। घोड़ा डालना-किसी योर वेग से घोड़ा बढ़ाना । जैसे,—उसने घोडायच--संवा स्त्री० [हिं० घोड़ा+बच गुरासानी बच जो सफेद हिरन के पीछे घोड़ा डाला। घोड़ा देना=घोड़ो को घोड़े से जोड़ा खिलानां । घोड़ा निकालना=(१) घोड़े को सिखलाकर होती है और जिसमें बड़ी उन गंध होती है। घोड़ावास-संज्ञा पुं० [हिं० घोड़ा+यांस] एक प्रकार का बांस जो. सवारी के योग्य बनाना । (२) घोड़े को आगे बढ़ा ले जाना। पूर्वी बंगाल और ग्रासाम में बहुत होता है। ... घोड़े पर चढ़े पाना=किसी स्थान पर पहुँचकर वहाँ से लोटने घोड़ाबल-संज्ञा स्त्री० [हिं० घोड़ा+बेल] एक लिपटनेवाली लता ।। के लिये जल्दी मचाना । घोड़ा पलाना-घोड़े पर काठी या जिसकी जड़े गठीली होती है। जीन कसना । घोड़ा फेंकना-वेग से घोड़ा दौड़ाना । घोड़ा विशेष--इसको पत्तियाँ एक वालिश्त के सींकों में लगती है और फेरना=(१) घोड़े को सिखाकर सवारी के योग्य बनाना । पतझड़ में झड़ जाती हैं । चैत, वैसाख में यह बेल धनी मंजरी (२) घोड़े को दौड़ने का अभ्यास कराने के लिये एक वृत्त में के रूप में फूलती है। यह वेल वुदेलखंड तथा उत्तराय भारत घुमाना। कावा देना। घोड़ा वेचकर सोना-खूब निश्चित के कई भागों में मिलती है। विलाईकंद इसी की जड़ है। होकर सोना । गहरी नींद में सोना । घोड़ा भर जानायचलते इसे तुराल और सरवाला भी कहते हैं। चलते घोड़े का दम भर जाना। घोड़े का थफ जाना । घोड़ा घोड़िया संशा खी० [हिं० घोड़ी+इया (प्रत्य॰)] १. छोटी घोड़ी। .. मारना=घोड़े को तेज दौड़ाने के लिये मारना। घोड़े की २. दीवार । गड़ी हुई खूटी जिससे कपड़े लटकाए जाते हैं। ३. मार मारकर खूब तेज बढ़ाना । छोटा घोड़ा । ४. जुलाहों का एक प्रोजार । वि०० घोड़ा। २. घोड़े के मुख के आकार का वह पेंच या खटका जिसके दबाने घोडी---संक्षा सोहिं० घोड़ा घोड़े की मादा । २. पायों पर खड़ा . से बंदूक में रंजक लगती है और गोली चलती है। उ०-तोड़ा काठ की लबी पटरी जो पानी के घड़े रखने, गोटे . पट्टे को सुलगत चढ़े रहैं घोड़ा बदूकन ।-भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ५२४॥ बुनाई में तार कसने, सेंवई पूरने, सेव वनाने आदि बहुत से . क्रि० प्र०--चढ़ाना ।-दवाना। कामों में आती है । पाटा। ३. दूर दूर रखे हुए दो जोड़े बाँसो ३. घोड़े के मुख के आकार का टोटा जो भार संभालने के लिये के बीच में बंधी हुई डोरी या अलगनी जिसपर धोबी कपड़ छज्जे के नीचे दीवार में लगाया जाता है । यह काठ का भी सुखाते हैं। ४. विवाह की वह रीति जिसमें दूल्हा घोड़ा। होता है और पत्थर का भी । ४. शतरंज का एक मोहरा जो पर चढ़कर दुलहिन के घर जाता है। ढाई घर चलता है। ५. कसरत के लिये लकड़ी का एक मोटा मुहा०-घोड़ी चढ़ना=दूल्हे का बारात के साथ दुलहिन. के.. कुंदा जो चार पायों पर ठहरा होता है और जिसे लड़के घर जाना। दौड़कर लाँघते हैं। ६. कपड़े यादि टांगने की खूटी। ५. वे गीत जो विवाह में वरपक्ष की ओर से गाए जात है। काड़ा करंज- संञ्चा पुं० [सं० घुतकरज] एक प्रकार का करंज जो. ६. खेल में वह लड़का जिसकी पीठ पर दूसरे लड़क सवार :