पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६६

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चकांचोंक चकोतरा चकाचा:-कि० वि० [हिं० चकाचक ] दे० 'चकाचक' । उ०---- धरनि धन धाम के।-तुलसी (शब्द०)।३. चौकन्ना । बढ़ेउ कमठ कह दाह कराहू । चकाचाक मा धाधक हाहू। सशंकित । डरा हुना। ४. डरपोक । कायर । . ---इंद्रा० पृ०१८ । चकित-संज्ञा पुं० १. विस्मय । २. पाशंका । व्ययं भय । ३. श्री चकचख ( सं० चक्ष ) या चमक कायरता।. . असवा सं० चक् (=चमकना)+चौ (चारों ओर)+संध] चकितवंत-वि० [सं० चकित+वत् (प्रत्य॰)] पाश्चर्ययुक्त । अत्यंत अधिक चमक या प्रकाश के सामने आँखों की झपक। विस्मित। भ्रांत । 30-अब अति चकितवंत मन मेरो। अत्यंत प्रखर प्रकाश के कारण दृष्टि की अस्थिरता। कड़ो रोशनी प्रायो हौं निर्गुन उपदेसन भयों सगुन को चेरो।-सूर के सामने नजर का न ठहरना । तिलमिलाहट । तिलमिली। (शब्द०)। क्रि० प्र०--लगना ।—होना । चकिता-संक्षा मो० [सं०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में गणों चकाचौंधी-संचा जी० [हिं० चकाचौँध] 'चकाचौंध' । का नम इस प्रकार होता है-5115 sssss IST चकातरी---संज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार के पेड़ का नाम । जैसे,-भो सुमति ! न गोविंदा जानो निपट नरा । देखति चकाना-मि० अ० [सं० चक-(भ्रांत)] चकपकाना। चकराना। जिन गोपि ग्वाल के जो गिरिहिं धरा। अचंभे से ठिठक जाना । हैरान होना । घबराना । उ०-(क) चकिताई संयो० [हिं० चकित चकित होने की अवस्था । रही कहाँ चकमाइ चित चल पिय सादर देख । लोहा कंचन विस्मय । अचंभा । होत तहँ पारस परस विसेख-रसनिधि (शब्द०)। (ख) चकिया-संज्ञा प्रो० [चक्रिका चक्की। दुराधर्ष ही दोऊ युद्ध ठाने। लखें राक्षसो वानरी से चकुंदाई-संज्ञा पुं० [सं० चक्रमर्द] चकवड़। पमाड़। दे० 'चकवेंड'। : चकाने ।-रघुराज (शब्द॰) । (ग) दूत दवकाने चित्रगुप्त हूँ चकुरी -संशा स्त्री० [सं० चक्र] छोटी हाड़ी। चकाने औ, जकाने जमजाल पापपुंज लुज त्वं गए ।- चकुला@+-संथा पुं० [देश॰] चिड़िया का बच्चा । चॅटुवा । उo- पद्माकर ग्रं॰, पृ० २५६ ।। चकाबू--- संज्ञा पुं० [सं० चक्रव्यूह] प्राचीन काल में युद्ध के समय अंडन के मनो मंडल मध्य ते निकसे चकुला चकवा के।--- किसी व्यक्ति या वस्तु की रक्षा के लिये उसके चारों ओर गंग (शब्द०)। के पीछे एक कई मंडलाकार पंक्तियों में सैनिकों की स्थिति। चकुलिया-संशा सी० [१० चक्रफुल्या ] एक प्रकार का पौधा या चक्रव्यूह । झाड़ी। चकाबह-संक्षा पुं० [सं० चक्रव्यूह] दे० 'च नव्यूह'। 30--का चक धना -संघा स्त्री० [हिं०] १० 'चकाचौंध' 1 30-फूधत माह: वसाइ जो गुरु अस बूझा । चकावूह अभिमनु जो जूझा ।- चकूधत जीऊ । केहि के कंठ लगे बिन पीऊ !-हिंदी प्रेम, जायसी ग्रं० (गुप्त), पृ० ३२० । पृ०२७६ । विशेष--इसकी रचना ऐसी चक्करदार होती थी कि इसके च ल -वि०म० चकिता दे० 'चकित' । उ-राजत वंसी मधुर. अंदर मार्ग पाना बड़ा कठिन होता था। यह एक प्रकार की धुनि मन मोहन की आन । सुनत थकित चकृत रही अद्भुत. भूलभुलैयाँ थीं । वि० दे० 'चक्रव्यूह' । अति ही तान |-बज० प्र०, पृ० ३७। मुहा०-चकावू में पड़ना या फंसना-फेर में पड़ना । चक्कर में चकेठ-संज्ञा पुं० [सं० चक्र+यष्टि] बौस या लकड़ी का एक नोकदार । जो पड़ना । ऐसी स्थिति में होना जिसमें कर्तव्य न सूझ पड़े। उंडा जिससे कुम्हार अपना चाफ घुमाते हैं । कुलालदंड। . चकार--संज्ञा पुं० [सं०] १. वर्णमालो में छठा व्यंजन वर्ण । २. दुःख या सहानुभूतिसूचक शब्द । जैसे,—वह वहीं खड़ा सब देखता चकेड़ी-संध श्री० [सं० चकमरिडका, प्रा० चक्कहंडिया] चकवंड। था पर उसके मुह से चकार तक न निकला। चकैवा--संज्ञा पुं० [सं० चक्रवाक, हिं० चकवा ] चकवा । उ०-- . चकाबल-संघा सी० [देश॰] घोड़े के अगले पैर में गामचे की हड्डी . कुचजुग चकेव चरइ.गंगाधारे-विद्यापति०, पृ०१८ ।' का उभार। चकोट----छा पुं० [हिं० चकोटना] चकोटने की क्रिया या भाव।। चकि-- वि० [सं० चकित] दे॰ 'च कित'। उ0--जाहि निरखि वृज- चकोटना--क्रि० स० [हि. चिकोटी ] चुटकी से मांस नोचना । वासी गन चकि गये मूढ वनि।-प्रेमघन॰, भा०१, पृ०६१। चिकोटी काटना । उ०-चंचल चपेट चोट चरन चकोटि चाह चकित--वि० [सं०] १.चकपकाया हुआ । विस्मित । प्रायचर्यान्वित । हहरानी फोज भहरानी जातुधान की।-तुलसी (शब्द०)। . • दंग । हक्का बक्का । भौचक्का । भ्रांत । २. हैरान । घबराया चकोतरा--संज्ञा पुं० [सं० चक्रगोला] एक प्रकार का बड़ा जबीर हुआ । उ०—(क) अजित रूप ह शैल घरो हरि जलनिधि नीबू । बड़ा नीबू । महा नीबू । सदाफल। सुगंधा । मातुलंग। मथिवे काज । सुर अरु असुर चकित भए देखे किए भक्त के . मधुकर्कटी। 'काज --सूर (शब्द०) (ख) लछिमन दीख उमाकृत वेषा। . विशेष-इसका स्वाद खट्टापन लिए मीठा होता है । इसका फाका चकित भए भ्रम हृदय विशेपा ।-तुलसी (शब्द०)। (ग) का रंग हलका सुनहला होता है। यह फल जाड़े के दिनों में . जाग बुध विद्या हित पंडित चकित चित जागै लोभी लालची मिलता है। ..