पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३८६

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चत्त चना करना । जगाना । उ०. वो उस दल अमृत रस पीच, उपरि चनक '-संश [सं० ] चना। 2.---जानत नारी हूँ'दल करें चतौना ।--सुंदर ग्रं०, भा०२, पृ०८६२।। फल चारही नमको । तुलसी (शब्द०)। चत्त -संज्ञा पुं० [सं० चित्त] १० चित्त'30-सुफी सरिस सुका चनक-संभाली [हिं० चमकना] मनपर्ने पाभाय या स्थिति। उच्च रघो, धरघो नारि मिर चित्त । रायन सगोगिय संभर, चनक-वि० [सं०क्षण] १. लि । २. गलमा और बंद मन मै मंडित हित्त ।-पृ० रा०,१४१२ । होना। उ०-चनमूद गम मा सदन। मदन गुपाल - चत्र -संशा पुं० [सं० चत्वार] दे० 'चतुर' या नार। कैलि रम छ। यनानंद, १०२८६ 1 यौ०-चत्रमास-चार महीना । चौमासा । उ०- दुप चत्र मास चनकन-- [देश०] नगगम । वादियो दिखणी, भोमगई सो लियत भयेरा ।-चांपी० चनकटा- सं देश] 30-तने मन मोजु.. ग्रं॰, भा०३, पृ० १०५ । मुठिन हनी एलन नगम -पचार ०, पृ० १४६ । चत्रगुन -सा पुं० [सं० शत्रुघ्न] राम को सबसे छोटे भाई । शनुन। चनकना--क्रि०प० [अनु॰] • सामना' । उ-विन पाच . उल-अव वरतंत माही याही सौ, भरत चत्र गुन भाई । दरात नहिं सहि सकी समीना बताय। मना नई सीसी गयो । सीता और कौशिल्या, सिया लछमन लहाई।--घट ०,१०१९६६ छिरयत छनकि गुलाम ।- मत ( द)। चत्र @~-वि० [सं० चतुर] २० चतुर' | 30-पुत्रो पोइ राजं सुराज चनकाम्ल-संशा पुं० [ [घराकारत] ३० नमाम्। विचारी। इक रूप सारं वियं चनारी। पृ० स०, २०२३४। चनसनाल-मि०प० [हि अनसना] गफा होना । चिहना । चत्र दश - सं० पुं० [सं० चतुर्दशी 2" 'चतुर्दश' । 30-चदश निटफना । 30-ग्रीहरिदायक स्वामी बामा कुजविहारी लोक लीला बरनन करें। रचा बराह जग विध वनाया। सोन्यारी जब तू बोलश नमानमय।--हरिदास (द०)। - तुरसी श०, पृ० १५ । चनचना-सं० [अनु॰] एक कोटा जो तमाय मी परत को चत्वर-संक्षा पुं० [सं०] १. चौमुहानी । चौरस्ता ! २.यह स्थान जहाँ हानि पहनाता है। यह तमाय के पत्तों की नगों में छेद भिन्न भिन्न देशों से लोग नाफर रहे । ३. होम के लिये साफ कर देता है जिससे पते गुग जाते है। इसे मानना भी किया हुप्रा स्थान । ४. चार रथों का समूह (को०)। पहने हैं। यो०-चत्यरत-चौराहे का वृक्ष। चनचनाना -कि० प्र० [हिं०] १. चिढ़ना। सफा होना। चत्वरवा सनी-संघा सी० [सं०] कार्तिकेय पी एफ मातृका का नाम । झोना । २. गतह मारना । मोध प्रस्ट मारना। चत्वारिंश-वि० [सं०] चालीसा । चनन--संपापुम• चन्दन पंदन । संस। ३० - प्रोदनी .. चत्वारिशत्-संवा स्त्री० [सं०] चालीस की संख्या या प्रका। घनन मेवरिया जोहाँ बाट । दिन माननिरया, पीजर चत्वाल-संशा पुं० [सं०] १. होमड । २.पुश नाम की घास । ३. हाथ। -रहीम (शरद०)। गर्भ । ४. वेदी । चबूतरा। चनवर(+--का . [देश॰] कौर । बारा! . . चदरा-संवा पुं० [हिं० चादर] दे० 'चादर'। चन सित-- पु. [सं.] श्रेष्ठ। महान् । चदिर- संज्ञा पुं० [सं०] १. कपूर २. चंद्रमा । ३. हायो। ४. सार। विशेष-वैदिक काल में समान के लिये नाम के पहले इस चहार--संधा स्त्री० [फा० चादर] १. चादर । २. किसो धातु का संघा साद को लगाकर ब्राहगो को संगधित करते थे। चौड़ा चौकोर पत्तर। चना--संका पुं० [सं० चरणक] ती फसल का एक प्रधान मन्न क्रि० प्र०--काटना 1--जड़ना --मढ़ना। जिसका पौधा हाथ हेद हाय तनचा होता है। . ३ नदी आदि के तेज बहाव में पानी का यह बहता हुमा अंश विशेप-इसकी छोटी कोमल पत्तियो कुछ खटाई और पार जिसका ऊपरी भाग 'कुछ विशेष अवस्थानों में बिलकुल लिए होती हैं और थाने में बहुत स्वादिष्ट होती हैं। इस समतल या चादर के समान हो जाता है। - अन्न के दाने प्रायः गोल होते हैं और इसके कार का छिलका विशेष- इस प्रकार की चादर में जरा भी लहर नहीं उठती उतार देने पर अंदर से दो दाले निकलती है, जो योर दालों और यह चादर बहुत ही भयानक समझी जाती है। यदि की तरह उबालकर खाई जाती है। यह अनेक प्रकार से नाव या मनुष्य किसी प्रकार इस चद्दर में पड़ जाय, .. खाने के काम माता है। ताजा चना लोग कच्चा भी चाते तो उसका निकलना बहुत कठिन हो जाता है। हैं; और सूखा चना भाड़ में भूनकर खाया जाता है । इससे मुहा०-चद्दर पड़ना=नदी के बहते हुए पानी के कुछ अंश का कई तरह की मिठाइयाँ और पाने की नमकीन चीजें बनती . एकदम समतल हो जाना। हैं। यह बहुत बलवाक और पुष्टिदायक समझा जाता है, . विशेष - दे. चादर'। पर गुछ गुरुपाक होता है। भारत में गह घोड़ों और दूसरे ४. एक प्रकार की तोप । 10---गुरदा चदर गंज गुपारे । लिए 'चौपायों को बलिष्ठ करने के लिये दिया जाता है। चंद्यक में लगाइ तीर कस भारे ।- हम्मीर, पृ० ३०।- इसे मधुर. रूखा और मेह, मृगि तथा रक्तपित्त नाशक, विशेष---इसमें बहुत सी गोलियां प्रथया लोहे के टुकड़े एक साथ दीपन, रुचि तथा बलकारक माना गया है। इसे बूद, छोले

तोप में गिरनारद गरी नौ। . पौर रहिवा भी पहले हैं।