पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९६

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चमूचर १४७५ ____ पनिका चमूचर-संज्ञा पुं० [सं०] १.सिपाही। २. सेनापति । - की।-(शब्द०)। २. पतली छड़ी। कमची। वैत । उ०- चमूर-संज्ञा पुं० [मं०] एक प्रकार का मृग । बालदार पूछवाला मृग.। चमोटी लगे छमाछम । विद्या प्राव झमाझम ।-(पाठशाला के चमूहर-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । महादेव । लड़के)। ३. वह चमड़ा जिसे फैदियों की वेड़ियों में लोहे की चमेठी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पालकी के कहारों की एक प्रकार की वोली। -रगड़ से बचने के लिये लगाते हैं। ४. चमड़े का वह टुकड़ा विशेष-सवारी लेकर जब कहार खेतों में चलते हैं और रास्ते जिसपर नाई छरे की धार घिसते हैं। ५.चमड़े का चार में अरहर गेहू', तीसी आदि की खूटियाँ पड़ती हैं, तो उनसे पाँच हाथ लंबा तस्मा जो खराद या सान में लपेटा रहता है वचने के लिये अगला कहार 'चमेठी' 'चमेठी' कहकर पिछले और जिसे खींचने से खराद या सान का चक्कर घूमता है।" कहारों को सावधान करता है। चमोग्रा-संज्ञा पुं० [हिं० चमौवा] दे० 'चमौवा'। . चमेलिया--वि० [हिं०] चमेली के रंग का। सोनजर्द । चमौवा–संक्षा पुं० [हिं० चाम+ौवा (प्रत्य॰)]वह भद्दा जूता चमेली--संज्ञा स्त्री० [सं० चम्पकवेलि ( यद्यपि वैद्यक के निघंटु में जिसका तला चमड़े से सिया गया हो। चमरौधा ।। 'चमेली' शब्द आया है, तथापि वह संस्कृत नहीं प्रतीत होता)] १. झाड़ी या लता जो अपने सुगंधित फूलों के लिये प्रसिद्ध है। चम्मच-संशा पुं० [फा० तुल० सं० चमस् ] एक प्रकार की हलकी विशेष-इसमें लंबी पतली टहनियाँ निकलती हैं, जिनके दोनों. कलछी जिससे दूध, चाय तथा और भी खाने पीने की चीजें प्रोर पतली सींकों में लगी हुई छोटी छोटी पत्तियां होती हैं। चलाते और निकालते हैं। चमेली दो प्रकार की होती है। एक साधारसा चमेली जिसमें चम्म चम्म -क्रि०वि० [हिं० चमचम या चमाचम] तेज या तीखी , सफेद रंग के फूल लगते हैं और दूसरी जर्द चमेली जिसमें पीले . चमक सहित । झलाझल चमक के साथ। रंग के फूल लगते हैं। फूलों की महक बड़ी मीठी होती है। चम्मडन-संहा पुं० [हिं० चमडा] १. चमड़ा। २. शरीर चमेली के फूलों से तेल बासा जाता है जो चमेली का तेल (लाक्ष०)। उ०-चम्मड दई बलाइ बिरह दी किसे हाइ कहलाता है। गया । घनानंद, पृ० ३४० । यौ०-चमेली का जाल एक तरह का कसीदा। चम्मल - संज्ञा पुं० [हिं० चमला] हे० 'चमला'। २. मल्लाहों की बोली में पानी की वह थपेड़ जो ऊंची लहर चम्मोरानी-संशा [देश॰] लड़कों का एक खेल जिसे 'सात समुदर : उठने के कारण दोनों ओर लगती है और जिसके कारण भी कहते हैं। प्रायः नावें डूब जाती हैं। चम्रिन्न-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] चम्मच में रखा हुआ अन्न या खाने की वस्तु । चमोई-संवा [ देश० ] एक पेड़ जिसकी छाल से नेपाली कागज प ला कागण चम्रीथ - वि० [सं०] चम्मच में रखा हुआ। र . . . बनाया जाता है। - चय-संथा पुं० [सं०] १. समूह । ढेर। राशि । २.धुस्स | टीला।। विशेष--इसे घनकोटा, सतपूरा, सतबरसा इत्यादि भी कहते हैं। यह पेड़ सिक्किम से भूटान तक होता है। .. . दूह। ३. गढ़ । किला। ४. किसी किले या शहर के चारों : . ... और रक्षा के लिये बनाई हुई दीवार । धुस । कोट । चहार- चमोकना -संज्ञा पुं० [हिं० चमोकना] एक प्रकार की बड़ी किलनी . दीवारी । प्राकार । ५. बुनियाद जिसके ऊपर दीवार बनाई या किलना। जाती है। नींव। ६. चवतरा ।७. चौकी । ऊँचा भासन । चमोकना-क्रि० स० [हिं०] १ किलनी का चमड़े से..चिपट ८. कफ, वात या पित्त की विशेष अवस्था। ६. यज्ञ के लिये जाना । २. किलनी की तरह चि मटना । ३. चुटकी से चमड़ा अग्नि आदि का एक विशेष संस्कार । चयन । १०. दुर्ग का- पकड़कर खींचना या तानना 'जिससे पीड़ा की अनुभूति' द्वार या फाटक को०1११. तिपाई को। १२. लकड़ी का .. होती है। ढेर (को०)। १३. प्रावरण को। १४. त्रिदोषों में से वात, . चमोटा-संज्ञा पुं० [हिं० चाम+पीटा (प्रत्य॰)] पांच छह अंगल का . पित्त या फफ किसी एक का उभर जाना (को०] । ..:- मोटे चमड़े का टुकड़ा जिसपर नाई छरे को उसकी धार तेज' चयक वि० [सं०] चयन करनेवाला (को०] 1 . करने के लिये वार बार रगड़ते हैं। " चयन'-संञ्चा पुं० [सं०] १. इकट्ठा करने का कार्य । संग्रह। संचय ।" चमोटी-संशा स्त्री० [हिं० चाम+ौटा (प्रत्य०).१. चाबुक। २. चनने का कार्य । चुगाई। ३. यज्ञ के लिये अग्नि का. कोड़ा। उ०—(क) माखनचोर री मैं पायो। मैं जु कही संस्कार । ४. क्रम से लगाने की क्रिया । चुनने की क्रिया। सखी होतु कहा है भाजन लगत झुझायो। जो चाहो तो जानं ...५. क्रम से रखना या लगाना (को० । क्यों पैहै बहुत दिननु है खायो । बार बार ही टू का लागी मेरी यो०-चयनशील-संग्रह करनेवाला या चुननेवाला । ... बात न पायो। नोई नेत की करौं चमोटी घूघट में डरवायो। '. विहसति निकसि रही दो दंतियाँ तब सैठ लगायो मेरे चयन @-संक्षा पुं० [हिं० चैन] दे० 'चेन' । लाल को मारि सके को रोहनि गहि हलरायो । सरदास प्रभ चयनिका संचा श्री० [सं०] १: चुनी हुई रचनाओं का संग्रह । वह ।। बालक लीला विमल विमल यश गायो।-सूर (शब्द०) संग्रह जिसमें कविता, कहानी, लेखादि, चुनकर रख गए है। (ख) खोटी पर उचट सिर चोटी चमोटी लग मनो काम गुरु २. चयन करनेवाली स्त्री (को०)। . . . . .